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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal'झरोखे' वस्तुओं को देखने वाले लैंस की तरह ही हैं। जैसा लैंस होगा, वैसा ही दिखाई देगा। लैंस मैला है, तड़का है या अपारदर्शी है, वस्तुएँ वैसी ही दिखेंगी। दुनिया को देखने के लैंंस झरोखे कहलाते हैं। जब हम झरोखे बंद कर लेते हैं तो बाहर की दुनिया हमारी आँखों से ओझल हो जाती है। बाहरी दुनिया देखने के लिए कभी अपने अन्य झरोखों को बंद कर केवल यात्रा के झरोखे खोलने की आवश्यकता होती है। यात्राएँ आपको रोजमर्रा की भागमभाग की दुनिया से दूर ले जाती हैं। घर की, दफ़्तर की समस्याओं को भूल एक अन्य संसार में प्रवेश का साधन होती हैं यात्राएँ।
एक यात्रा कर लौट आने क बाद ही अहसास होता है कि एक नया जन्म मिला है और हम अपनी घर-बाह्र की परेशानियों को सुलझाने पूरे मनोयोग से लग जाते हैं। यात्रा करना भी कोई आसान काम नहीं है। उसकी पूर्व योजना बनानी होती है, समस्त जानकारी एकत्र करनी होती है। टिकट, वीसा, होटल बुक करना; सभी करना होता है। फिर आता है काम उस देश की मूल जनाकारी का और दर्शनीय स्थलों की सूची का। यह पुस्तक 'झरोखे' आपके लिए ऐसी कई समस्याओं का समाधान लेकर प्रस्तुत हुई है। दुनिया के पाँच देशों की बहुत सारी घूमने में सहायक जानकारी इस पुस्तक में दी गई है। इस पुस्तक के झरोखों से आप देख पाएँगे दुनिया के कई देशों को, जैसे- यूक्रेन, मोंटेनेग्रो. मलेशिया, किर्गिस्तान, सल्तनत ऑफ़ ओमान।
आशा है यह पुस्तक आपकी यात्राओं को नियोजित करने में सहायक सिद्ध होगी और इसे घुमक्कड़ प्रजाति की पाठकोंंका भरपूर स्नेह प्राप्त होगा।
डॉ. आरती 'लोकेश'
डॉ. आरती ‘लोकेश’ ने अंग्रेज़ी साहित्य मास्टर्स में कॉलेज में द्वितीय स्थान तथा हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर में यूनिवर्सिटी स्वर्ण पदक प्राप्त किया। हिंदी साहित्य में पी.एच.डी. की उपाधि ली। तीन दशकों से शिक्षाविद डॉ. आरती ‘लोकेश’ शारजाह में वरिष्ठ प्रशासनिक अध्यक्ष हैं और साहित्य की सतत सेवा में लीन हैं।
बीस वर्षों से दुबई में बसी डॉ. आरती ‘लोकेश’ द्वारा रचित 14 पुस्तकें प्रकाशित हैं। तीन उपन्यास ‘रोशनी का पहरा’, ‘कारागार’, ‘निर्जल सरसिज’; तीन काव्य-संग्रह ‘काव्य रश्मि’ ‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’, ‘प्रीत बसेरा’; दो कहानी संग्रह ‘साँच की आँच’ व ‘कुहासे के तुहिन’, कथेतर गद्य-संग्रह ‘कथ्य अकथ्य’, यात्रा-संस्मरण ‘झरोखे’; शोध ग्रंथ ‘रघुवीर सहाय का गद्य साहित्य और सामाजिक चेतना’; तीन संपादित: ‘सोच इमाराती चश्मे से’, ‘होनहार बिरवान’, ‘डॉ. अशोक कुमार मंगलेश : काव्य एवं साहित्य चिंतन’। इनके साहित्य पर पंजाब व हरियाणा के विश्वविद्यालय में शोध कार्य किया जा रहा है।
'अनन्य यू.ए.ई.' पत्रिका की मुख्य संपादक होने के साथ-साथ वे ‘श्री रामचरित भवन ह्यूस्टन’ की सह-संपादिका तथा ‘इंडियन जर्नल ऑफ़ सोशल कंसर्न्स’ की अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रीय संपादक हैं। प्रणाम पर्यटन पत्रिका की विशेष संवाददाता यूएई हैं। टैगोर विश्वविद्यालय ‘विश्वरंग महोत्सव’ की यू.ए.ई. निदेशिका, ‘विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस’ की यू.ए.ई हिंदी दिवस 2021 समन्वयक हैं।
उनकी रचनाएँ प्रतिष्ठित पत्रिकाओं ‘शोध दिशा’, ‘इंद्रप्रस्थ भारती, ‘गर्भनाल’, ‘वीणा’, ‘परिकथा’, ‘दोआबा’, ‘समकालीन त्रिवेणी’, ‘साहित्य गुंजन’, ‘संगिनी’, ‘सृजन महोत्सव’, ‘साहित्य त्रिवेणी’, ‘अक्षरा’, ‘नवचेतना’, ‘बाल किरण’, ‘अभिव्यक्ति’, ‘अनुभूति, ‘सौरभ’, ‘मुक्तांचल’, ‘विश्वरंग’, ‘21 युवामन की कहानियाँ’, ‘कथारंग’, ‘विवशता’, ‘रिश्ता’ तथा ‘सोच’ में प्रकाशित हुई हैं। आलेख: ‘खाड़ी तट पर खड़ी हिंदी’ ‘हिंदुस्तानी भाषा भारती’ तथा सांस्कृतिक आलेख ‘वीणा’ में जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। यात्रा संस्मरण- ‘प्रणाम पर्यटन’ नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुए। शोध-पत्र, लेख, लघुकथाएँ एवम् कविताएँ आदि विभिन्न साझा-संग्रहों
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