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Vivek SreedharAuthor of Ketchup & CurryDr. Arti ‘Lokesh’, born in India in 1970, has been an educationist by profession since 1992, garnering 28 years of work experience and life knowledge. In the year 2000 she moved to Dubai, UAE with her husband and two kids and pursuant to her love for education, earned a doctorate in Hindi Literature. That was the time when she discovered her passion for writing. She has a great inclination towards psychology and neurolinguistic programming. She believes in equal rights, liberty and opportunities for all, irrespective of religion, status, gender and nationality. Her thoughts provoked her to pen down fiction and choose a bold, strong and proactive female characters as the protagonist in her all novels. Her untold feelings unfolded in the form of poems she wrote. The stories she pens are plucked from her surroundings and what she observes in her day to day life. Her travelogues are an evidence of her outgoing and exploring nature. Her articles on the rich culture and heritage of the gulf countries are widely appreciated. Her passion for teaching and her guiding nature led her to use her experiences to also guide others in their endeavors for writing and earning their doctorate.
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स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य में रघुवीर सहाय के अद्वितीय लेखन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर गंभीरता से लिखा है। वे व्यापक अर्थों में साह
स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य में रघुवीर सहाय के अद्वितीय लेखन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर गंभीरता से लिखा है। वे व्यापक अर्थों में साहित्यकार हैं उनके साहित्य का प्रयोजन कालातीत है। उनके लिए साहित्य उनके शब्द और कर्म दोनों में रचा बसा है। साहित्य की आधारभूमि पर स्थित रहकर वे राजनीति, समाज, कानून, इतिहास, संस्कृति, आर्थिक विकास आदि सभी क्षेत्रों में भ्रमण करते हैं। उनके कविता संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
रघुवीर सहाय का इतना प्रबल गद्य साहित्य उपलब्ध होते हुए भी उनके व्यक्तित्व को सदा एक कवि के नज़रिए से देखा, समझा व आँका गया है। उनकी कविताओं पर तो आलोचकों का खूब ध्यान गया है, उनकी समुचित आलोचनात्मक व्याख्या भी हुई है परंतु वह गद्य, जो उनकी कविता से कहीं आगे जाता है, कुछ हद तक उपेक्षित सा प्रतीत होता है। बहुमुखी विकास और समानता के अवसर की राह दिखाने वाले उनके गद्य पर गंभीर कार्य का अभाव दृष्टिगोचर होता है। गद्य की समस्त विधाओं में उनका साहित्य उपलब्ध होने के कारण उनके साहित्य पर शोध का कार्य चुनौती भरा अवश्य है किंतु असंभव नहीं। शोध कार्यों का अनुसंधान करने से यह ज्ञात हुआ कि अधिकांश शोधार्थियों ने उनकी काव्य रचना पर ही अधिक कार्य किया है। इसलिए मौलिक शोध कार्य के हित मैंने अपने शोध का विषय ‘रघुवीर सहाय के गद्य में सामाजिक चेतना’ का चयन किया। अपने शोध कार्य को अन्य शोधार्थियों के अध्ययन व सुविधा के लिए इस शोध ग्रंथ को मैं शिक्षा जगत को सौंपती हूँ।
‘साँच की आँच’ सत्य से जूझती ग्यारह कहानियों का अद्भुत संगम है जिनमें प्रेम, संघर्ष, लगन, श्रद्धा, आत्मबल की पावक में परिशुद्धता ग्रहण कर संशय, भेदभाव, लोभ, स्वार्थ को तिरोहित क
‘साँच की आँच’ सत्य से जूझती ग्यारह कहानियों का अद्भुत संगम है जिनमें प्रेम, संघर्ष, लगन, श्रद्धा, आत्मबल की पावक में परिशुद्धता ग्रहण कर संशय, भेदभाव, लोभ, स्वार्थ को तिरोहित करती हुई त्याग, समर्पण, समानुभूति व विवेकपूर्ण विचारों-भावनाओं का उदय प्रतिध्वनित होता है। संग्रहित कहानियों में से अनेक किस्से प्रवासी व्यथा व वेदना-संवेदना को मुखरित करते हैं। नवागत ग्रामबाला की दुबई के विद्यालय में अस्तित्व की लड़ाई हो या दुबई में पोषित बालकों का भारत के परिवेश से सामंजस्य स्थापना के लिए जूझना, पिता की मृत्यु पर पहुँच न पाना, एक प्रवासी मन की अकुलाहट के प्रत्यक्ष दर्शन का आमंत्रण है। प्रवासी भूमि की मिट्टी और जन्मभूमि की मिट्टी के गुण-दोषों का आकलन भी कलम से साथ-साथ ही बहकर कहानी में गढ़ता जाता है। परंपराओं से आधुनिकता की यात्रा के कई पड़ाव इन कहानियों के कथ्य बनकर उभरे हैं।
स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य में रघुवीर सहाय के अद्वितीय लेखन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर गंभीरता से लिखा है। वे व्यापक अर्थों में साह
स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य में रघुवीर सहाय के अद्वितीय लेखन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर गंभीरता से लिखा है। वे व्यापक अर्थों में साहित्यकार हैं उनके साहित्य का प्रयोजन कालातीत है। उनके लिए साहित्य उनके शब्द और कर्म दोनों में रचा बसा है। साहित्य की आधारभूमि पर स्थित रहकर वे राजनीति, समाज, कानून, इतिहास, संस्कृति, आर्थिक विकास आदि सभी क्षेत्रों में भ्रमण करते हैं। उनके कविता संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
रघुवीर सहाय का इतना प्रबल गद्य साहित्य उपलब्ध होते हुए भी उनके व्यक्तित्व को सदा एक कवि के नज़रिए से देखा, समझा व आँका गया है। उनकी कविताओं पर तो आलोचकों का खूब ध्यान गया है, उनकी समुचित आलोचनात्मक व्याख्या भी हुई है परंतु वह गद्य, जो उनकी कविता से कहीं आगे जाता है, कुछ हद तक उपेक्षित सा प्रतीत होता है। बहुमुखी विकास और समानता के अवसर की राह दिखाने वाले उनके गद्य पर गंभीर कार्य का अभाव दृष्टिगोचर होता है। गद्य की समस्त विधाओं में उनका साहित्य उपलब्ध होने के कारण उनके साहित्य पर शोध का कार्य चुनौती भरा अवश्य है किंतु असंभव नहीं। शोध कार्यों का अनुसंधान करने से यह ज्ञात हुआ कि अधिकांश शोधार्थियों ने उनकी काव्य रचना पर ही अधिक कार्य किया है। इसलिए मौलिक शोध कार्य के हित मैंने अपने शोध का विषय ‘रघुवीर सहाय के गद्य में सामाजिक चेतना’ का चयन किया। अपने शोध कार्य को अन्य शोधार्थियों के अध्ययन व सुविधा के लिए इस शोध ग्रंथ को मैं शिक्षा जगत को सौंपती हूँ।
‘प्रीत बसेरा’ कवयित्री का दूसरा काव्य संग्रह है। पहले काव्य संग्रह ‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’ की सफलता के बाद ‘प्रीत बसेरा’ में वे प्रेम में रची-पगी सी कविताएँ लाईं हैं।
‘प्रीत बसेरा’ कवयित्री का दूसरा काव्य संग्रह है। पहले काव्य संग्रह ‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’ की सफलता के बाद ‘प्रीत बसेरा’ में वे प्रेम में रची-पगी सी कविताएँ लाईं हैं। प्रेम के सभी रूपों संयोग-वियोग, अनुराग-विराग, उल्लास-वेदना पर ने यहाँ अभिव्यक्ति पाई है। प्रेम में भीगी,कभी आह्लाद से रसीली तो कवि आँसुओं से सीली, आर्द्र मन से उपजी हुई कविताएँ हैं। उसी रस से सराबोर करने हेतु ये मधुर-मृदु कविताएँ आपके समक्ष पुस्तक रूप में प्रस्तुत हैं। ‘प्रीत बसेरा’ के चार सर्गों ‘प्रेरणा’, ‘प्रकृति’, ‘प्रीति’ और ‘प्रतीति’ में संबंधों, सुषमा, शृंगार और स्त्रीमन की कविताएँ हैं। साधारणत: प्रत्येक साहित्यकार काव्य के द्वारा ही अपनी भावनाओं को शब्द देता है और इसी कड़ी में कवयित्री डॉ. आरती ‘लोकेश’ ने भी काव्य विधा को आगे बढ़ाया है। डॉ. आरती के काव्य संग्रह से गुजरते हुए महसूस किया जा सकता है कि उनकी कविताओं में जहाँ एक ओर परिवार के प्रति समर्पण के भाव हैं, वहीं दूसरी ओर रोजगार के सिलसिले में अपने देश, समाज, परिवार, सखी-सहेलियों से दूर होने की पीड़ा भी है। इस काव्य संग्रह में अस्मिता, अहमियत, मर्यादा, त्याग, समर्पण भाव को लेकर सरल शब्दों में कविताएँ रची गई हैं जिससे कोई भी पाठक इन्हें आसानी से आत्मसात कर सकता है। बिम्बों और अलंकारों से कविता मुक्त है। कविताओं की भाषा, शिल्प और शैली भी जटिल नहीं है। भावों की सघनता होने के कारण इन कविताओं को पढ़कर जितना महसूस किया जाएगा उतना ही इन कविताओं की तह तक पहुँचा जा सकता है। सामान्यतः कविता का पाठक केवल शब्दों को पढ़कर आनंदित होना चाहता है किंतु शब्दों के बीच जो फासला होता है कविता वहीं ठहरी होती है। जो इस अंतराल को समझ सकता है उन्हें इस पुस्तक को पढ़कर अच्छा लगेगा।
सौंदर्य व आस्था के करीब ...
‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’ में कवयित्री ने मानव संवेदनाओं को समेटते हुए 62 कविताओं का समावेश किया है जिन्हें पाँच भागों में विभाजित किया है। वे है
सौंदर्य व आस्था के करीब ...
‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’ में कवयित्री ने मानव संवेदनाओं को समेटते हुए 62 कविताओं का समावेश किया है जिन्हें पाँच भागों में विभाजित किया है। वे हैं ‘उपासना’, ‘उद्बोधन’, ‘उत्कर्ष’, ‘उत्सर्ग’ और ‘उद्गार’। डॉ. आरती की कविताओं की विशिष्टता यह है कि वे जीवन की सुंदरता को अनुभव करती हैं, साथ ही सौंदर्य व आस्था को काफी करीब से महसूस भी। उनकी कविताओं में नारी प्रधानता भी दिखती है। डॉ. आरती की कविताओं में विनम्र बोध का भी अहसास होता है। जिसमें शिल्प हिन्दी की सहज लयात्मकता पर संरचित है। कहने का मतलब उनका यह संग्रह अत्यंत सहज, सरल ढंग से मानव अनुभूतियों के अतीत, वर्तमान और भविष्य को कविता के पटल पर जाँचता, परखता है जिसमें उनकी संवेदनाएँ, उनके लेखन, क्षमता व अन्वेषण दृष्टि का आभास दिलाती हैं।
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आज परमू की शादी है। शहर का सबसे महँगा बेंकट हॉल। विवाहस्थल किसी राजमहल से कम नहीं। मुख्य द्वार पर बिजलियाँ अभिवादन Read More...
सुनसान सड़कें, अँधेरी गलियाँ, निर्जन मौहल्ले... ! खामोशी ऐसी कि पत्ता भी खड़के तो कई किलोमीटर दूर तक सुनाई दे। और सुनाई Read More...
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