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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआपके हाथ में ये किताब देखकर इतना तो पक्का हो गया कि आप पढ़ने के शौक़ीन हैं। आपकी जानकारी के लिए बताता चलूँ कि इस वक़्त आपके हाथ में छोटी-छोटी कहानियों की एक किताब है, और मैं इस किताब का लेखक हूँ।
एक मिनट के लिए आप मुझे इग्नोर कर सकते हैं पर आपको बताना जरूरी है कि अगर व्यंग्य में आपकी १० प्रतिशत भी रूचि है तो आप इस किताब को एक बार पढियेगा जरूर। इस पूरी प्रक्रिया में मेरी मेहनत और आपका शौक़ दोनों पूरे हो जाएँगे। मेरी कहानियों के पात्र ...? आप सारे पात्रों से कहीं न कहीं मिले जरूर होंगे! अरे आपके पड़ोस के वो शर्मा जी हैं न, या वो कॉलोनी का लोकल कार्यकर्ता मुकुंद, अच्छा छोड़िये, वो राधे पान भण्डार वाला तो याद ही होगा; अतुल जी को भी भूल गए! कमाल है। आप जैसे लोगों के लिए ही तो मैंने ये किताब लिखी है कि समय असमय आपको ये पात्र याद आते रहें तभी तो जब आप बाहर सड़कों पर निकलेंगे तो इनसे उनको रीलेट कर पाएँगे।
इस किताब में और क्या है, सब यहीं बता देने से कहानी का ज़ायका जाता रहेगा। तो चलिए, इस कहानी का असली फ्लेवर चखते हैं, आपके साथ ...
अभिषेक आनंद
इंजीनियरिंग करने के बाद एक एम.एन.सी में ९ से ५ की नौकरी के बाद भी 'आनंद' कहानी लेखन के बिना खुद को अधूरा मानते हैं। बिहार के एक छोटे गाँव माधोपुर से निकलकर राइटिंग के सपने को ९५ प्रतिशत करियर बना लेने की आनंद की कहानी मजेदार है। पिछले दो सालों में आनंद की छपी तीन किताबों को देखकर लगता है, वो इस सफर में रुकने वाले नहीं।
अब सवाल ये है कि 'आनंद' क्यों ख़ास हैं? क्या है, जो उनकी कहानियों को अलग बनाता है?
आम लोग, उनकी कहानियाँ, उनसे निकले व्यंग्य और अनगिनत हम और आप जैसे पात्र ... ये सब आनंद को ख़ास ही नहीं बनाते बल्कि उन्हें लेखकों की भीड़ में थोड़ा अलग भी खड़ा कर देते हैं। उनकी पिछली किताबें "वैनिटी बैग" और "शिप्रा का पानी" की कुछ कहानियाँ क्लासिक केटेगरी में आती हैं।
इस किताब में भी उनकी कुछ कहानियों के टाइटल मात्र से अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि उनके प्लाट और करैक्टर कैसे होंगे - "भाड़े का सूट", "प्रतिष्ठा में ए सी लगवाना", "टीवी वाली रामायण", "कार्य प्रगति पर है" और इन जैसे ही कई और।
आनंद एक एम बी ए और एक शायर भी हैं। हाल ही में ग़ज़लों की उनकी एक किताब "तुम्हारी ख़ातिर" आयी है।जैसा कि उनका नाम है, आनंद का मानना है कि ज़िन्दगी जी भर के जीनी चाहिए। मुस्कुराते रहिये और नए रिश्ते बनाते रहिये।आनंद अपनी माँ को अपनी कहानियों के सबसे बड़े आलोचक मानते हैं।
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