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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआस्था और विश्वास दो मानसिक गुण हैं जो बाल्यावस्था से ही माता पिता और परिवार की संस्कृति और संस्कारों से अपने आप मानव पटल में घर कर लेते हैं। यदि सामाजिक व्यवस्था और संस्कृति भी उसी अनुकूल की मिल जाये तो फिर तो "सोने पे सोहागा" वाली बात ही समझिये। किसी भी दिवार की स्थिरता उसकी नींव कैसे भरी गई है उस पर ही निर्भर करती है।
कुछ अच्छे कर्म पिछले जन्मों में किये होंगे कि जो मुझे एक संस्कारी विद्वान ब्राह्मण परिवार में जन्म मिला। मेरे दादा जी संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन व भागवत कथा भी करते थे। मेरे माता श्री प्रातः ३-४ बजे उठ जाते थे और घर का प्रातः काल कार्य भगवान के भजन गाते हुए ही करते थे। उनकी सुरीली, मधुर आवाज में आंख खुलते ही भगवान का नाम कानों में पड़ता था। इसी कारण बचपन से ही सुबह जल्दी उठने का अभ्यास हो गया था। माता श्री और दादा जी से अपने संस्कार, संस्कृति और धर्म की शिक्षा बिना सिखाये ही मन मस्तिक में घर कर गई थी। बदलते समय की पुकार, पंजाब के ग्रामीण जीवन में अब सनातन संस्कार अलोप होते जा रहे थे और मुझे भी सरकारी स्कूल पढ़ने के लिए लगा दिया गया था। १९६२ चीन - भारत युद्ध हुआ। १९६४ में देशभक्ति का मन का एक भाव मुझे हवाई सेना की सेवा में ले आया था। २१ बर्ष की सेवा में १९६५ और १९७१ के युद्ध में भाग लिया। इस समय में देश की सामाजिक व्यवस्था और धर्म और मजहव विश्वास के बारे में बहुत कुछ पढ़ा और समझा भी। आज मैं अपने अटल विश्वास के साथ कहता हूँ, "सनातन ही सत्य है"! "सनातन-धर्म ही सत्य है"! "सनातन वेद-ग्रन्थ ही सत्य हैं"! और सनातन त्रिदेव भी सत्य हैं और शिव और विष्णु ने जो अवतार धारण किये वोह भी सत्य हैं। भारत के ऋषि मुनियों की तपस्या भी फलदाई होती है। यह तो मुझे अपनी माता, दादा जी और अपने सिद्ध पुरष श्री गुरु देव के जीवन साधना में ही दिखाई दे गया था। मुझे सनातन धर्म और भारत देश और इस की संस्कृति पर गर्व है।
डा. शिव राम भागी
मेरा जन्म पंजाब में एक विद्वान ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मेरा लालन-पालन मेरे संस्कृत के बहुत अच्छे विद्वान और वेदांती दादा श्री और एक बहुत ही संस्कारी मेरी माता श्री के स्नेह संस्कार में पलते हुए हुआ था। मुझे अपने पिता श्री का सुख नहीं मिला था। मेरी आयु ४-५ मॉस की ही थी जब २१-२२ बर्ष की आयु में ही मृत्यु ग्रस्त हो गए थे। माता श्री सुबह ४ बजे उठ जाती थी और घर काम करते हुए भगवान के भजन अपनी मीठी सुरीली आवाज में गया करती थी। मेरे कानों में मीठे भगवान के भजनों के शब्द मुझे भी जगा देते थे और मेरी बचपन से अब तक प्रातः जल्दी उठ जाने की आदत बानी हुई है। दादा जी से मुझे अपने देश की धर्म संस्कृति और संस्कारों की गहन शिक्षा और भगवान की कथाएं सुनने को मिलीं।
स्कूल और उसके कॉलेज और होमियोपैथी की पढाई की और हवाई सेना में १९६४ से २१ बर्ष सेवा दी। पढ़ने और ज्ञान की खोज करना मेरा स्वाभाव रहा है और लिखना मेरा शौक रहा है। कविता व भजन भी लिखे हैं जो पंजाबी और हिंदी में हैं। अब मेरा उद्देश्य अपना अर्जित ज्ञान वर्तमान और भविष्य पीढ़ी में बांटना है। आशा है उद्देश्य प्रभु कृपा से सार्थक होगा।
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