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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palमनीषी पं. जनार्दनराय नागर द्वारा रचित जगद्गुरु शंकराचार्य उपन्यास श्रृंखला में यह 'शंकर-सन्देश' है। महर्षि बादरायण के सन्देशानुसार शंकर ने सच्चिदानन्द स्वरूप में सन्देश दिया - सच्चिदानन्द ही आत्मा है, परमात्मा है, ज्ञान ही सत् है, चित्त है, आनन्द है, आत्मज्ञान है। जीवात्मा का सत हैं, चित है, आनन्द है, आत्मज्ञान है। जीवात्मा का सत स्वभाव ज्ञान रूप है, ज्ञानमय है, ज्ञान पूर्ण परिपूर्ण है।
आत्मा बहुस्याम जीवन के अनुभव और अपने विभूतिमय सत्य के लिए अज्ञानमय होकर जगत् की रंगभूमि रचता तथा भव-संसार के नाट्य किया करता है किन्तु यह लीला आत्मा की प्रकृति नहीं है, यह आत्मा की अभिलाषा भर है। स्वप्नमयी स्वप्नवत् स्मृति दग्ध आत्मा का स्वभाव सच्चिदानन्द है और यही ज्ञान है, ब्रह्म है- शाश्वत सत्य है। ब्रह्म ही सत्य है। शून्यातीत होना योग का अभीष्ट है, कालातीत होना जीवन का अभीष्ट है और ब्रह्म स्थित होना आत्मा का अभीष्ट है। संज्ञान से उपरत कालातीत होकर जीवन शून्य से परे हो जाता है और अपने वास्तविक स्वरूप ब्रह्म का साक्षात करता है।
पं. जनार्दन राय नागर
पं. जनार्दन राय नागर का जन्म उदयपुर में 16 जून, 1911 ई. को हुआ। बहुआयामी प्रतिभा के धनी पं. नागर ने शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति व समाज सेवा आदि क्षेत्रों में अपनी अमिट कीर्ति स्थापित की। गाँधीवादी संस्कारों से दीक्षित व कथा सम्राट प्रेमचन्द्र के आशीष पात्र रहे। उन्होंने मेवाड़ में शिक्षा के उद्देश्य से सन् 1937 में राजस्थान विद्यापीठ की स्थापना की। वर्तमान में जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर के रूप में स्थापित है।
शिक्षा की लोक साधना में लीन जनार्दन राय नागर ने उपन्यास, कहानी, गद्य-गीत, जीवन चरित्र व काव्य विधाओं में लेखन किया। उनके द्वारा रचित ‘जगद्गुरु शंकराचार्य’ दस उपन्यासों की श्रृंखला है, उनके ‘राम-राज्य’ उपन्यास एवं गद्य-गीत संग्रह, कहानियां प्रकाशित हुए हैं। उनके नाटक ‘आचार्य चाणक्य’, पतित का स्वर्ग’, ‘ऊदा हत्यारा’, ‘जीवन का सत्य’, अत्यन्त चर्चित रहे।
‘मुधमती’, ‘स्वर मंगला’, ‘नखलिस्तान’, ‘बालहित’, ‘कल्कि’, ‘वसुन्धरा’ व ‘अरावली’ आदि पत्रिकाएं उनकी कीर्ति पताकाएं हैं।
राजस्थान साहित्य अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष एवं केन्द्रीय साहित्य अकादमी, हिन्दी सलाहकार समिति (रेल्वे), केन्द्रीय प्रौढ़ शिक्षा सलाहकार समिति के मनोनीत सदस्य रहे। उन्हें ‘नेहरू साक्षरता’ व ‘महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन पुरस्कार’ एवं अनेक राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए। इस यशस्वी व्यक्तित्व का 15 अगस्त, 1997 को उदयपुर में निधन हुआ।
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