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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palसिंध वैदिक काल से लेकर आज तक अनवरत सत्ता संघर्ष का केंद्र रहा है, किंतु सातवीं शताब्दी में सिंध पर हुए आक्रमणों में न केवल सत्तांतरण अपितु आस्थान्तरण, कत्लेआम, मृत सैनिकों के सिर काटकर युद्ध भूमि में उन्हें एक टेकरी के रूप में सजाना, युवतियों को अरब अधिकारियों के मनोरंजन हेतु भेजना, ऐसे अनेक नए प्रचलनों का प्रवेश, भारतीय जनमानस को स्तब्ध करने जैसा प्रयास था| इन प्रयासों में गृह छिद्रों के रूप में देश की अपेक्षा स्वहित को प्रधान मानने वाले वणिक वर्ग के सत्ता तक पहुंचे द्विमुखी सर्पीले अजगरों की भूमिका भी प्रमुख रूप से आकांताओं के हित में प्रभावी रही थी| आंखें सदा घर के डंडों से ही फूटती आई है| परिस्थितियां आज भी लगभग वैसी ही है जैसी आठवीं शताब्दी मे थी| आज के इतिहास के अध्याय जिस रूप में पुनरावर्तित हो रहे है, उनकी जड़े सिंध नरेश दाहर की छलपूर्वक हत्या के रूप में दिखाई देती है|
श्री हारीत, चचदेव, दाहर सेन और दाहर जैसे सिन्धु के ऐतिहासिक पूर्वजों की तत्कालीन परिस्थितियों के विश्लेषण के रूप में यह उपन्यास भारत के प्रबुद्ध लोगों को समर्पित है|
श्याम सुन्दर भट्ट
श्री श्याम सुंदर भट्ट राजस्थान के उन इनेगिने साहित्यकारों में से एक हैं जिन्होंने इतिहास के उन महावीरों पर अपनी कलम चलाई, जिनका जुड़ाव स्वयं के स्वार्थ की अपेक्षा धरती से जुड़ा रहा है| बप्पा रावल, हारीत, महाराणा प्रताप, हम्मीर, अमर सिंह, राज सिंह, राणा सांगा, चूंडा, कालजयी श्री परशुराम जैसे महापुरुषों पर आपके उपन्यास चर्चित रहे हैं| फीजी के जनमानस पर आधारित “बंद मुट्ठियों के सपने” नामक ग्रंथ एवं सांस्कृतिक भूगोल कोश आपकी विशेष देन है|
श्री भट्ट को राजस्थान साहित्य अकादमी, महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन, राज्य सरकार और कई साहित्य संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है|
स्वतंत्र लेखन के अतिरिक्त वर्तमान में आप सृष्टि सेवा समिति उदयपुर तथा सावित्री बाई फुले उदयपुर के संस्थानों के दायित्वों से जुड़े हुए हैं|
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