Share this book with your friends

Urvi / उर्वी काव्य-चयनिका / Anthology of Poems

Author Name: Rajeev Kumar Dubey | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details

'उर्वी' लेखक की प्रथम काव्य-चयनिका है। इस संग्रह की कविताओं में आध्यात्मिक उत्कर्ष, सार्वभौम एकात्मता, विश्व-भ्रातृत्व, विश्व-शांति, राष्ट्र के प्रति अनन्य समर्पण, भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए प्रेरणा, नारी–सशक्तिकरण और निसर्ग-प्रेम का अपूर्व एवं दुर्लभ समायोजन दृष्टिगोचर होता है, जो अत्यंत सहजता से किसी भी पाठक के हृदय पर अपना अमित संकेत छोड़ जाने में सक्षम हैI 

“कलम नहीं गिरवी रखता” कहकर कवि ने जहाँ यथार्थ की अभिव्यक्ति के प्रति अपनी प्रबल समर्पणता का शंख फूँक दिया है, वहीं “मुझको कवि समझे मत कोई। मैं लेखनी, अन्तस् की पीड़ा, एकाकी युग-युग से रोयी।” कहकर उसने विद्यमान इतिहास और वर्तमान की पीड़ा को अनावरित किया है। मानव द्वारा मानव का शोषण, निर्धनता, दुर्भिक्ष, कुपोषण, भ्रूण-हत्या, नारी उत्पीड़न, राजनीति का अवमूल्यन, पर्यावरण प्रदूषण, धर्म-नीति-अध्यात्म का क्षरण आदि समस्याओं को उजागर कर उसने वर्तमान समाज को सोचने हेतु विवश कर दिया है। 

बिम्ब विधान का पोषण करती रचनाएँ पक्षियों के माध्यम से, ऋतुओं के माध्यम से मानव को जाग्रत करने में पूर्ण रीति सक्षम हैं। इस काव्य-संग्रह की रचनाएँ पाठकों का न केवल संपूर्ण मनोरंजन करती हैं, अपितु ज्ञान-विज्ञान, धर्म-इतिहास व यथार्थ-आदर्श से अवगत कराते हुए सत्पथ पर अग्रसर होने हेतु प्रेरित भी करती हैं। 

Read More...
Paperback
Paperback 199

Inclusive of all taxes

Delivery

Item is available at

Enter pincode for exact delivery dates

Also Available On

राजीव कुमार दुबे

राजीव कुमार दुबे वर्तमान में वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान में निश्चेतना (Anaesthesiology) विभाग के प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि आयुर्विज्ञान के निश्चेतना विषय (Anaesthesiology) एवं अस्पताल प्रबन्धन (Hospital Administration) में स्नातकोत्तर है। एक लोकप्रिय शिक्षक और लब्धप्रतिष्ठ चिकित्सक होने के साथ ही वह एक मुखर लेखक व सम्वेदनशील कवि भी हैं।

कविता के प्रति उनका प्रेम बाल्य-काल से ही रहा है। उन्हें कविता की पहली दीक्षा रामचरितमानस के नियमित अध्ययन-मनन के रूप में अपने पिता से बाल्यावस्था में ही प्राप्त हुई। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी के युगधर्म, देशप्रेम और सामाजिक चेतना की उनपर अमिट छाप है। उनकी कविताओं में सत्य, सामाजिक सौहार्द्र, विश्व-भ्रातृत्व और मानवीय मूल्यों के प्रति एक सुलभ आकर्षण परिलक्षित होता है। एक ओर शान्ति-समन्वय और अहिंसा के गुण, तो दूसरी ओर अन्याय का ओजपूर्ण विरोध करने के संस्कार सम्भवतः उन्होंने बापू (गाँधी जी) से आत्मसात् किया है। भारतीय संस्कृति, साहित्य और इतिहास का उन्होंने गहन अनुशीलन किया है। गीता, अध्यात्म व योग में उनकी विशेष अभिरुचि है। उनकी कविताएँ अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। साहित्यिक काव्य-मंच और आकाशवाणी के माध्यम से भी प्रसारित उनकी कविताओं को सराहा गया है।

Read More...

Achievements

+1 more
View All