विशुद्धोपागम निग्रहागमों के अन्तर्गत आने वाला एक उपागम है। इसे प्राणविद्या भी कहते हैं। यह नाभिदर्शना देवी और निग्रहाचार्य के मध्य हुए संवाद पर आधारित है। इसमें १८० श्लोक एवं १० अधिकार हैं। प्रसङ्गाधिकार में ग्रन्थ के अवतरण तथा तत्त्वमीमांसा का वर्णन है। स्थानाधिकार में देहस्थ प्राणों की अङ्गानुसार स्थिति बतायी गयी है। वर्णाधिकार में प्रत्येक प्राण से सम्बन्धित देवता एवं स्वरूप का वर्णन है। धर्माधिकार में प्राणों की क्रियाएं बतायी गयी हैं। यज्ञाधिकार में प्राण