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Bebak / बेबाक

Author Name: Sabir Ali Sabir | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details

साबिर अली साबिर की रचनाएं संवेदना और शिल्प दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। संवेदना की बात करें तो साबिर अन्य अनेक सूफी-संत कवियों की तरह सच की तलाश में लगे हैं। सत्य का शोध करने के लिए तमाम तरह के झूठ व प्रपंच को पहचानते हैं। उसे बहुत बेबाकी के साथ अभिव्यक्त करते हुए उसका खंडन करते हैं। हिन्दी संत कवि कबीर की तरह का उनका मिजाज है, जो झूठ और पाखंड के प्रचारकों को बुरी तरह लताड़ता है। साबिर को जो दिखाई देता है, वे उसे कहने में जरा भी संकोच नहीं करते। वे अपनी कविता ‘झूठ’ में कहते हैं- ‘सच अकेला एक है, गाँव है झूठ का।’ सच और झूठ की जंग में साबिर अकेले सच के साथ मजबूती के साथ खड़े होते हैं। इकबाल ने कभी कहा था-‘मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।’ लेकिन वक्त ने मजहब के नए-नए रंग देखे हैं। धर्म ने आज जो रूप ले लिया है, अनुवादित पुस्तक में एक कविता है ‘मजहब’, लेकिन इसको लिखने में पूरे ग्यारह साल लगे। वह एक ही शब्द में वे युगों का सच कह जाते हैं। कविता में वे मजहब को ‘माफिया’ की संज्ञा देते हुए एक शब्द में ही बहुत कुछ कह जाते हैं। क्योंकि मजहब के नाम पर कुछ लोगों को पाप कर्म करने का लाइसेंस मिल गया है। इसी के नाम पर वे दूसरे धर्म के लोगों को इन्सान भी मानने को तैयार नहीं है। अपनी धार्मिकता के दंभ का ही नया रूप दिखाते हुए वे मॉब लिंचिंग करते हैं। इसी के नाम पर वे दंगा करते हैं। कवि का कहना है कि इस तरह की घटनाओं से ऐसा नहीं कि कुछ हो नहीं रहा है। धर्म का नाम लेकर तरह-तरह के काम करने वाले लोगों का सच उजागर हो रहा है। वे कहते हैं- ‘कौन क्या है, नंगा हुआ है।’ एक अन्य कविता में वे साहस के साथ उन पंडत, फादर और मुल्लों को ललकारते हैं, जोकि भगवान के नाम पर इन्सानों को मारते हैं।

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साबिर अलि साबिर

साबिर अली साबिर
लाहौर में 13 जनवरी 1978 को जन्मे साबिर अली साबिर किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनकी छोटी छोटी और कुछ लम्बी पंजाबी कविताओं का अन्दाज़ ही निराला है। थोड़े से शब्दों में बहुत बड़ी बात कह देने की विधा के मालिक साबिर पाकिस्तान के सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक गलियारों से अपने बागी तेवरों की कविताओं के माध्यम से रूबरू हैं। यूट्यूब पर हम उनकी स्वयं की कविताओं का पाठ सुनते हुए उनके शब्दों के मारक प्रभाव को महसूस कर सकते हैं। साबिर की कविताएँ हमारे देश के परिवेश में भी उतनी ही सटीक लगती हैं जितनी कि पाकिस्तान में। यही कारण है कि उनकी पंजाबी कविताएँ पंजाब में बड़े चाव से सुनी और पढ़ी जाती हैं। उनकी कुछ छोटी छोटी कविताओं का हिंदी में अनुवाद 'बेबाक' के माध्यम से साबिर के पाठकों का दायरा बढ़ पाएगा, इस उम्मीद के साथ यह पुस्तक आपके हाथों में है।

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