आइंस्टाइन अगर कानपुर में पैदा होता तो आइंस्टनवा होता और गुरुत्वाकर्षण की खोज जैसी फालतू बात करने पर उसका मजाक उड़ाया जा रहा होता । सात साल के अरशद का नाम भी मजाक मजाक में आइंस्टनवा पड़ गया था। इसलिए नहीं कि वो अकलमंद था बल्कि इसलिए कि सब उसे अकल से मंद समझते थे। आए दिन उसके अब्बू नफीस मियाँ उसे घसीटते हुए स्कूल ले जाया करते थे, क्यूंकि वो नहीं चाहते थे कि उनका बेटा भी उनकी तरह किसी गेराज का मैकेनिक बनकर रह जाए इसीलिए अरशद के बड़े भाई सोहेब पर भी कक्षा नवमी में साइंस साइड लेने का भरपूर प्रेशर था।
नफीस मियां खुद का गेराज खोलना चाहते थे। अरशद की अम्मी नफीसा किसी एक दिन बगैर पैसों की फिक्र के सोना चाहती थी। और दादी रुखसार बेगम क्रिकेट कॉमेंटेटर बनना चाहती थी। आँगन में लगा अमरुद का पेड़ जो ज्यादा कीटनाशक दवा के छिड़काव से बाँझ हो चुका था मीठे अमरुद फरना चाहता था। उस घर की हर नीली पुती चीज, जैसे टीन के बर्तन, लकड़ी की कुर्सी अलमारी और स्टूल अपने असल रंग को देखना चाहते थे जिनके मुंह पर पुताई का बचा डिस्टेम्पर पोत दिया गया था। कलेक्टर अलीबाबा का खजाना ढूंढना चाहता था। मोहल्ले का हर घर हवाई चचा की तरह सड़क किनारे जमीन खरीद उसमें किराए की दुकानें बनवाना चाहता था। इस किताब में शामिल सभी किरदार आपके आस-पड़ोस के हैं। आप उन्हें बखूबी पहचानते हैं।
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