भारत अमेरिका की तरह राष्ट्रपति लोकतंत्र है। भारतीय और अमेरिकी राष्ट्रपति अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचक मंडलों द्वारा चुने जाते हैं। भारतीय निर्वाचक मंडल में विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य और संसद के दोनों सदन होते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव उन निर्वाचकों द्वारा किया जाता है जो उस उद्देश्य के लिए चुने जाते हैं। दोनों राष्ट्रपतियों के पास संबंधित संविधानों के अनुच्छेद 2 और 53 के अंतर्गत कार्यकारी, सैन्य और कुछ न्यायिक शक्तियां होती हैं। अमेरिका में निर्वाचित राज्यपालों के पास राज्यों की कार्यकारी शक्ति होती है; भारत में, राष्ट्रपति मनोनीत राज्यपाल होते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति राज्यों के नाम, स्थिति और विस्तार को बदल नहीं सकते हैं, लेकिन भारतीय संसद अनुच्छेद 3 के अंतर्गत ऐसा कर सकता हैं। यह अमेरिका को संघीय और भारत को एकात्मक बनाता है। सदन विधायी होते हैं; राष्ट्रपति कार्यकारी होते हैं। भारत या अमेरिका में, कार्यपालिका द्वारा सरकार बनाने और चलाने के लिए विधायिकाओं में बहुमत महत्वहीन है। बहुदलीय प्रणाली और मध्यावधि चुनाव असंवैधानिक हैं। भारत में, राजनीति में जो हो रहा है, उसकी तुलना पाकिस्तान के संविधान में कही गई बातों से की जा सकती है। अनुछेद ५५ कहता हैं की राष्ट्रपति का चुनाव में हर राज्य का सामान प्रतिनिधित्व हो जिस का मतलब, हर राज्य में करीबन समान जन संख्या होने चाहिए। राज्य विभाजन इसका विरुध्द हो रहा हैं। भारत को राष्ट्रपति लोकतंत्र और दो दलीय प्रणाली में वापस लौट आना चाहिए अन्यथा, देश को गरीबी, सामाजिक संघर्ष, राजनीतिक अस्थिरता और अंत में देश के विभाजन सुनिश्चित है ।