दो शब्द
जीवन की आपधापी में समय कहाँ है किसी के पास। ऐसे में तीव्र उत्कंठा और तात्कालिक सुलझाव मनुष्य की अपेक्षा बन गये हैं। परिणामतः साहित्य ने अपने स्वरूप में परिवर्तन करना भी लाजिमी है। कविताओं ने छंद छोड़कर भाव और संवेदनापक्ष को महत्व दिया। लघुकथा ने कहानी का विस्तार छोडा और संवेदना को तीव्रता से अपनाया। वैसे ही इन लघुनिबंधों ने विचार को प्रमुखता दी है।