मेरा प्रेम यादें और समर्पण के विषय में
प्रेम संसार का सबसे पवित्र बंधन है ,और सबसे बड़ी अतिशयोक्ति यह है कि प्रेम कभी बंधन में बंधा ही नहीं है। प्रेम के जैसा स्वतंत्र ,स्वच्छंद कुछ भी नहीं है। प्रेम हर बंधन तोड़ सकता है, किन्तु किसी बंधन में नहीं बनता है। इस प्रेम के दो पहलू हैं--- एक वह जो स्वच्छंद है ,काल्पनिक है, दूसरा सांसारिक है ,नैसर्गिक है। एक प्रेम वह है, जिसमें कोई चाहत नहीं है, कोई कामना नहीं है ,कोई अभिलाषा नहीं है। दूसरा प्रेम वह है ,जो चाहत रखता है, कुछ पाना चाहता है, किसी का होना चाहता है और किसी को अपना बनाना चाहता है।
प्रेम की हर व्यक्ति के लिएअलग-अलग परिभाषा हैं ।हम अपनी पुस्तक ' मेरा प्रेम --- यादें और समर्पण' के माध्यम से प्रेम के अलग-अलग पहलुओं से आप सभी का परिचय कराना चाहते हैं। यह प्रेम पल्लवित हो,पुष्पित हो, खूब फले फूले।
हर एक ह्रदय में प्रेम बसे। यही कामना है कि हर एक व्यक्ति प्रेम का सही अर्थ जाने और समझे और एक अच्छा इंसान बनने की प्रेरणा पाए।