यह पुस्तक विज्ञान की जीत के विषय में है, फिर भी हम कैसे भूलें, जरूरतमंदों तक इसका लाभ पहुंचाने में हमारी प्रणाली की विफलता, जो साल दर साल 55000 से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार है? रेबीज से अब कोई जान क्यों जाए, जब हमारे पास जीवन की रक्षा के सभी साधन हैं? विकसित देशों ने भले ही रैबीज से काफी हद तक छुटकारा पा लिया हो लेकिन विकासशील देश अभी भी पीड़ित हैं।
यह सच है कि रेबीज एक निश्चित मौत की सजा है लेकिन साथ ही यह भी याद रहे कि यह 100 प्रतिशत रोकथाम योग्य बीमारी है।
यह पुस्तक उन सभी सवालों के जवाब देने के लिए है जो किसी रेबीज आशंकित के मन में आते हैं जब कोई संतोषजनक जवाब देने वाला नहीं मिलता, जिससे घबराहट और यहां तक कि मानसिक समस्याएं भी हो जाती हैं। यहां तक कि कई स्वास्थ्यकर्मी भी नवीनतम सिफारिशों से अच्छी तरह वाकिफ नहीं हैं क्योंकि प्रत्येक रोगी की अपनी अनूठी स्थिति होती है। लोग सोशल मीडिया में जवाब खोजते हैं और भ्रमित हो जाते हैं। आधी-अधूरी और प्राय: भ्रामक जानकारी अति आवश्यक होने पर सरल प्रबंधन को भी विलंबित और जटिल बना सकती है। प्रत्येक रेबीज मृत्यु हमारे ज्ञान और हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की विफलता है।
लेखक, जो इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक ज्ञान-साझाकरण मंच- 'क्वोरा' पर कई वर्षों से सवालों के जवाब देते आ रहे हैं, ने पूरे विषय को बहुत आसान, दिलचस्प, बिंदु से बिंदु, और बिना किसी अकादमिक बाजीगरी के समझाया है। यह पुस्तक सरल भाषा में बहुत अच्छे से समझाती है कि अब रेबीज से हर जान बचाई जा सकती है, जब हमारे पास सभी साधन उपलब्ध हैं।