जैसा की आप सब जानते हैं कि हमारे यहां पुरुष प्रधान समाज है। लेकिन स्त्री के बिना ये संभव नहीं है। हमने बचपन से सुना है कि स्त्री और पुरूष गाड़ी के दो पहिए हैं पर किसी ने ये नहीं बताया कि स्त्री कौनसा पहिया है। मेरा मानना है कि स्त्री आगे का पहिया है जो पीछे वाले पहिए को खींचता है। स्त्री हमारे समाज का एक अभिन्न अंग है। स्त्री के बिना तो सृष्टि में रचना ही असंभव है। मेरी ये किताब उन सभी स्त्रियों को समर्पित है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे साथ खड़ी रही हैं। हमे सहारा दिए हुए हमारे हर कदम पर। अलग अलग रूप में कभी माँ, कभी बहन, कभी दोस्त, कभी पत्नी और कभी बेटी बनकर। हम उनका ऋण नहीं चुका सकते। ये किताब उन सब स्त्रियों को मेरे आदरसहित प्रणाम के साथ समर्पित है।