यह मेरी 9वीं पुस्तक है आशा है पाठक वर्ग अन्य पुस्तकों की तरह इस पुस्तक को भी पसंद करेंगे। यह पुस्तक मेरे पिताजी पूज्यश्री पुरुषोत्तम दास कापड़िया को समर्पित है।लंबे अरसे से इच्छा थी कि महिलाओं के सामर्थ्य को उजागर करने हेतु एक पुस्तक का सृजन किया जाए। जहाँ चाह वहाँ राह। फरवरी 2020 में मेरी एक सहेली के घर पर उसकी सेवानिवृत्ति के पश्चात सभी का एकत्रीकरण आयोजित किया गया था। ईश्वर कृपा से कोरोना महामारी से पूर्व। आयोजन काफी सफल रहा। मुझे अनेक सहेलियों के साथ 2 दिन बिताने का अवसर कई सालों के बाद मिला था। इस अवसर के बाद महिलाओं पर किताब तैयार करने का हौसला बुलंद हो गया। । हम तो समाज में जागरूकता फैलाने हेतु लिख रहे हैं। अक्सर यह देखने को मिलता है कि शिक्षा प्राप्त कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होकर आगे आने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। साथ ही साथ महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की संख्या भी बढ़ रही है। घरेलू अत्याचार के साथ-साथ कार्यक्षेत्र पर हो रहे अत्याचार भी बढ़ रहे हैं। अपने आप को संभालना है और समाज के लिए कुछ करना है।खुद पर यकीन कर लो यह आसमान कह रहा है।मंजिल तो मिल ही जाएगी कल का सूरज तुम्हारा है।।पाठक वर्ग को आश्चर्य जरूर होगा कि महिलाओं पर लिखी गई पुस्तक को मैंने पिताजी को समर्पित क्यों किया है। उत्तर देना अनिवार्य है। जब जब महिलाओं पर अत्याचार होने के समाचार आते थे तब वे सदैव कहते थे कि ‘‘महिलाओं को शिक्षित होकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना चाहिए। साथ ही साथ अपनी रक्षा के लिए हाथ में झाड़ू उठाने की भी हिम्मत होनी चाहिए।’’