इंसान के अंदर इंसानियत अर्थात नेकी करने की भावना कहां से आती है? भले ही वह नास्तिक हो लेकिन वह नेकी करना चाहता है हालांकि वह नेकी न भी करें तो कोई प्रॉब्लम नहीं है क्योंकि वह धर्म के किसी भी नियम को नहीं मानता , न हीं ईश्वर से डरता है क्योंकि वह ईश्वर को मानता ही नहीं है, लेकिन फिर भी एक सबसे बड़ा प्रश्न है कि नेकी की भावना क्यों तथा कहा से आती है और वह नेकी क्यों करना चाहता है?
आज भी विश्व में 80% मनुष्य ईश्वर को मानता है। जो नास्तिक है उनमें भी अंदर ही अंदर वह ईश्वर को मानते हैं लगभग 50%, जो अपने आप को इग्नोस्टिक कहते हैं वह भी अंदर ही अंदर कंफ्यूजन में रहते हैं और वह एक प्रश्न उनके दिमाग में बना रहता है कि ईश्वर है कि नहीं?
गौतम बुद्ध को विश्व का कोई भी इंसान ऐसा नहीं होगा जो उनको नहीं जानता होगा, लगभग सभी लोग जानते हैं। उनकी विचारधारा अत्यंत प्रभावपूर्ण है। क्योंकि वह ईश्वर के बारे में प्रश्न को बेमतलब समझते थे उनकी मान्यता यही थी कि मानव के लिए कोई महान कार्य किया जाए, अर्थात उसके दुखों व समस्याओं का हल कैसे निकाला जाए।
ईश्वर के होने न होने के बारे में विचार करने पर इंसान पहले अपने आप को देखता है अपने जीवन तथा मृत्यु के बारे में सोचता है और इसी उलझन में पड़ जाता है इसलिए वह हमेशा कंफ्यूज रहता है कि ईश्वर है कि नहीं। यह एक बड़ा गंभीर प्रश्न व विषय है। इस पुस्तक में मैंने पवित्र कुरान द्वारा ईश्वर के जो प्रमाण प्रस्तुत है उसे प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, आप इसे पढ़ें और लाभ उठाएं यदि कोई और प्रमाण हो तो कृपया अवगत करायें मैं आपकी जानकारी को सजा करने का प्रयास करूंगा ।
धन्यवाद
आपका- अब्दुल वहीद ,बाराबंकी ,उत्तर प्रदेश, भारत (इं
डिया)