विदाई - एक पिता का दर्द
माँ की कोख में रही संतान नौ माह, लेकिन पिता के मस्तिष्क में रहती है ताउम्र। खासकर बात जब बेटियों की हो, तो देह पिता की होती है लेकिन दिल बनकर उसमें धड़कती हैं बेटियाँ। तभी तो विदाई का जो दर्द एक पिता को होता है वो शायद दुनिया में कोई दूसरा महसूस नहीं कर सकता। सोचिये कैसे जीता होगा वो शरीर जिसका हृदय ही किसी और को दे दिया जाए और शिथिल देह छोड़ दी जाए।
एक बेटी के पैदा होने के साथ ही बूँद बूँद सपने संजोता है एक पिता, उसकी विदाई के, और जब वो क्षण करीब आता है तो सुन्न पड़ जाते हैं उस पिता के हाथ पाँव और खुशी और पीड़ा की मिली जुली भावना एक सुखद अनुभव के एहसास का परिचय कराती है उस पिता को। बेटी की विदाई से व्यथित पिता की भावनाओं को व्यक्त करना यूँ तो मुमकिन है ही नहीं, लेकिन हमारे कुछ सह लेखकों से पुरजोर प्रयास किया है उन भावनाओं का तुच्छ सा स्वरूप कविताओं में उकेरने का। उन्हीं प्रयासों का संगम है - आशा है हमारा प्रयास हमारे पाठकों के प्रेम से लाभांवित हो सके।। धन्यवाद