जब कोई भी देश समाज या राष्ट्र बदलाव चाहता है। तो उसे सबसे पहले वहाँ के नागरिकों को बदलने की शुरुआत करनी होगी। क्योंकि जब हम खुद बदलेंगे तब पड़ोसी गाँव, तहसील, जिला, प्रदेश और इसी तरह से पूरा राष्ट्र बदल जाएगा।
खुद का अनुशासन जिम्मेदारी और नैतिक कर्तव्यो को समझते हुए राष्ट्र निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाए। जब देश के लिए कोई नया कार्य या बदलाव का कार्य हो तो सभी नागरिकों को अपनी थोड़ी-थोड़ी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। जिससे मजबूत एवं सशक्त राष्ट्र का निर्माण हो सके। समाज में पिछडे, गरीब, दलित एवं असहायो की सहायता एवं सहयोग करके सभी एक साथ उन्नति पथ पर अग्रसर हो सकें।
इस पुस्तक में भरसक प्रयास किया गया है कि समाज में एक नई सोच विकसित हो सके जिससे समाज देश राष्ट्र को एक नई दिशा मिल सके।
धन्यवाद!