"विशुद्ध अनुभूतियाँ - द्वितीय भाग" पुस्तक आपके समक्ष प्रस्तुत है। जो स्वाभाविक रूप से प्रथम भाग में वर्णित लेखों के आगे के लेखों का वर्णन है।
चित्त के विकार के अंतर्गत इंद्रियों की माया, समय की युक्ति/छल, आवेग एवं इच्छाएँ, मान्यताएं, ज्ञान संबंधी पूर्वाग्रह, सकल सामान्यीकरण, अंध विश्वास, आस्था, अप्रत्यक्ष ज्ञान, भ्रम, संदेह, आसक्ति, मिथक, वैज्ञानिक सिद्धांत, गणितीय माडल, प्रतिरोध, पीड़ा, दर्द, नकारात्मकता, नीरसता, अवसाद, मूर्खता, कठोरता, भ्रम, चंचलता.. विषय लिए गए हैं। आवश्यक विस्तृत वर्णन किया गया है। इनसे पार कैसे पाया जाय ये भी बताया है।
अहंकार और उसकी प्रवृत्तियां, उसके विकार - भय, क्रोध, वासना, लोभ, आलस्य, ईर्ष्या, अभिमान, छल, आसक्ति, स्वामित्व, प्रेम, घृणा, आत्म दया, भी आवश्यक विस्तार से लिखा गया है।
शरीर का अनुभव, शरीर तथा उनके चालक, व्याधि, विकृति, विकलांगता, मृत्यु,मृत्यु का भ्रम, जीवित मृत्य, मस्तिष्क प्रति चित्त, जगत का अनुभव एवं उसकी माया जैसे विषयों पर लेखन भी सम्मिलित है।
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