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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
शुद्ध अनुभूतियाँ तृतीय एवं चतुर्थ भाग आपके समक्ष प्रस्तुत है।
तृतीय भाग में मुख्यतः सुख एवं मुक्ति, बिना क्रियाओं के कार्य करना -सेवा, क्षमा, दान, गुरु विद्या, विद्यार्थी के
शुद्ध अनुभूतियाँ तृतीय एवं चतुर्थ भाग आपके समक्ष प्रस्तुत है।
तृतीय भाग में मुख्यतः सुख एवं मुक्ति, बिना क्रियाओं के कार्य करना -सेवा, क्षमा, दान, गुरु विद्या, विद्यार्थी के गुण, पुस्तकों का पथ, आत्म निरीक्षण की कला के विभिन्न प्रयोग, प्रतिरोध प्रयास तथा अवसर, बाधाएं एवं उनके निवारण जैसे लेख प्रस्तुत हैं। चतुर्थ भाग में चित्त-विराम, विरोधाभास, चेतना एवं यंत्र, समर्पण, अज्ञान की परतें, चित्त की अवस्थाएं, मानचित्र, सूक्ष्म प्रक्षेपण, मृत्यु का वरण, सृष्टि, गृह-गमन, स्मृतियाँ इत्यादि का संक्षिप्त विवरण है।
आशा है साधक जनों को ये रूचिकर एवं ज्ञान युक्त प्रतीत होगा।
शुद्ध अनुभूतियाँ तृतीय एवं चतुर्थ भाग आपके समक्ष प्रस्तुत है।
तृतीय भाग में मुख्यतः सुख एवं मुक्ति, बिना क्रियाओं के कार्य करना -सेवा, क्षमा, दान, गुरु विद्या, विद्यार्थी के
शुद्ध अनुभूतियाँ तृतीय एवं चतुर्थ भाग आपके समक्ष प्रस्तुत है।
तृतीय भाग में मुख्यतः सुख एवं मुक्ति, बिना क्रियाओं के कार्य करना -सेवा, क्षमा, दान, गुरु विद्या, विद्यार्थी के गुण, पुस्तकों का पथ, आत्म निरीक्षण की कला के विभिन्न प्रयोग, प्रतिरोध प्रयास तथा अवसर, बाधाएं एवं उनके निवारण जैसे लेख प्रस्तुत हैं। चतुर्थ भाग में चित्त-विराम, विरोधाभास, चेतना एवं यंत्र, समर्पण, अज्ञान की परतें, चित्त की अवस्थाएं, मानचित्र, सूक्ष्म प्रक्षेपण, मृत्यु का वरण, सृष्टि, गृह-गमन, स्मृतियाँ इत्यादि का संक्षिप्त विवरण है।
आशा है साधक जनों को ये रूचिकर एवं ज्ञान युक्त प्रतीत होगा।
"विशुद्ध अनुभूतियाँ - द्वितीय भाग" पुस्तक आपके समक्ष प्रस्तुत है। जो स्वाभाविक रूप से प्रथम भाग में वर्णित लेखों के आगे के लेखों का वर्णन है।
चित्त के विकार के अंतर्गत इंद
"विशुद्ध अनुभूतियाँ - द्वितीय भाग" पुस्तक आपके समक्ष प्रस्तुत है। जो स्वाभाविक रूप से प्रथम भाग में वर्णित लेखों के आगे के लेखों का वर्णन है।
चित्त के विकार के अंतर्गत इंद्रियों की माया, समय की युक्ति/छल, आवेग एवं इच्छाएँ, मान्यताएं, ज्ञान संबंधी पूर्वाग्रह, सकल सामान्यीकरण, अंध विश्वास, आस्था, अप्रत्यक्ष ज्ञान, भ्रम, संदेह, आसक्ति, मिथक, वैज्ञानिक सिद्धांत, गणितीय माडल, प्रतिरोध, पीड़ा, दर्द, नकारात्मकता, नीरसता, अवसाद, मूर्खता, कठोरता, भ्रम, चंचलता.. विषय लिए गए हैं। आवश्यक विस्तृत वर्णन किया गया है। इनसे पार कैसे पाया जाय ये भी बताया है।
अहंकार और उसकी प्रवृत्तियां, उसके विकार - भय, क्रोध, वासना, लोभ, आलस्य, ईर्ष्या, अभिमान, छल, आसक्ति, स्वामित्व, प्रेम, घृणा, आत्म दया, भी आवश्यक विस्तार से लिखा गया है।
शरीर का अनुभव, शरीर तथा उनके चालक, व्याधि, विकृति, विकलांगता, मृत्यु,मृत्यु का भ्रम, जीवित मृत्य, मस्तिष्क प्रति चित्त, जगत का अनुभव एवं उसकी माया जैसे विषयों पर लेखन भी सम्मिलित है।
"विशुद्ध अनुभूतियाँ - द्वितीय भाग" पुस्तक आपके समक्ष प्रस्तुत है। जो स्वाभाविक रूप से प्रथम भाग में वर्णित लेखों के आगे के लेखों का वर्णन है।
चित्त के विकार के अंतर्गत इंद
"विशुद्ध अनुभूतियाँ - द्वितीय भाग" पुस्तक आपके समक्ष प्रस्तुत है। जो स्वाभाविक रूप से प्रथम भाग में वर्णित लेखों के आगे के लेखों का वर्णन है।
चित्त के विकार के अंतर्गत इंद्रियों की माया, समय की युक्ति/छल, आवेग एवं इच्छाएँ, मान्यताएं, ज्ञान संबंधी पूर्वाग्रह, सकल सामान्यीकरण, अंध विश्वास, आस्था, अप्रत्यक्ष ज्ञान, भ्रम, संदेह, आसक्ति, मिथक, वैज्ञानिक सिद्धांत, गणितीय माडल, प्रतिरोध, पीड़ा, दर्द, नकारात्मकता, नीरसता, अवसाद, मूर्खता, कठोरता, भ्रम, चंचलता.. विषय लिए गए हैं। आवश्यक विस्तृत वर्णन किया गया है। इनसे पार कैसे पाया जाय ये भी बताया है।
अहंकार और उसकी प्रवृत्तियां, उसके विकार - भय, क्रोध, वासना, लोभ, आलस्य, ईर्ष्या, अभिमान, छल, आसक्ति, स्वामित्व, प्रेम, घृणा, आत्म दया, भी आवश्यक विस्तार से लिखा गया है।
शरीर का अनुभव, शरीर तथा उनके चालक, व्याधि, विकृति, विकलांगता, मृत्यु,मृत्यु का भ्रम, जीवित मृत्य, मस्तिष्क प्रति चित्त, जगत का अनुभव एवं उसकी माया जैसे विषयों पर लेखन भी सम्मिलित है।
पुस्तक के विषय में
विशुद्ध अनुभूतियाँ पुस्तक के कुल चार में प्रथम भाग प्रस्तुत है। इसमें क्रमानुसार लेखक के ब्लॉग के लेख सम्मिलित हैं। लेख आध्यात्मिक विषयों जैसे आत्म, चेत
पुस्तक के विषय में
विशुद्ध अनुभूतियाँ पुस्तक के कुल चार में प्रथम भाग प्रस्तुत है। इसमें क्रमानुसार लेखक के ब्लॉग के लेख सम्मिलित हैं। लेख आध्यात्मिक विषयों जैसे आत्म, चेतना, चित्त, संसार, अहंकार और शरीर की मूलभूत अवधारणाओं पर हैं। कई अभ्यास एवं आत्म निरीक्षण भी सम्मिलित हैं।
लेखक को अनेक शिक्षकों से लाभ मिला है, उनकी शिक्षाओं के लिए उनका आभार व्यक्त है। उन्हीं शिक्षाओं को अधिक आधुनिक और सुलभ रूप में व्यक्त करने का यह लेखक का विनम्र प्रयास है। लेख ज्ञानमार्गी के लिए अत्यंत व्यावहारिक महत्व के हैं अतः अवश्य लाभदायी होंगे।
अध्यात्म में जब गुरुकृपा होती है, आत्मज्ञान होता है, सत्य स्वरुप प्रकट होता है तो अत्यंत रोमांचक स्थिति होती है। एक दिव्य आनंद होता है। इस स्थिति में भावपूर्ण विचार अभिव्यक्त
अध्यात्म में जब गुरुकृपा होती है, आत्मज्ञान होता है, सत्य स्वरुप प्रकट होता है तो अत्यंत रोमांचक स्थिति होती है। एक दिव्य आनंद होता है। इस स्थिति में भावपूर्ण विचार अभिव्यक्त होते हैं। ऐसी ही अभिव्यक्ति पद्य रूप में स्वामी चैतन्यानन्द जी द्वारा हुई है अपने गुरु भगवान मायानन्द जी से मिलने के उपरांत। ये कालखंड १९३० से १९५९ के बीच की बात है। "परमपद" पुस्तिका जैसी है वैसी ही रूप में प्रस्तुत है। इसकी भाषा सरल है, जो आम आदमी की समझ के अंदर है। आध्यात्मिक मार्ग के साधकों के लिए पूर्वाभास की तरह ये कार्य करेगी, सहायक सिद्ध होगी।
A human being that has realised their true nature and abides in it, becomes eternally free from all bondages, ignorance and suffering. We often refer to such beings as self-realised, awakened or enlightened. Whatever term we may choose to describe them, such beings have shed all their ignorance and their life is characterised by simplicity and freedom. The Path of Knowledge explored in this book provides guidance to an ardent seeker to discover and realise the
A human being that has realised their true nature and abides in it, becomes eternally free from all bondages, ignorance and suffering. We often refer to such beings as self-realised, awakened or enlightened. Whatever term we may choose to describe them, such beings have shed all their ignorance and their life is characterised by simplicity and freedom. The Path of Knowledge explored in this book provides guidance to an ardent seeker to discover and realise their true "Self" as well as understand various aspects of this Existence. This knowledge is based on ancient wisdom which has been shared in a clear, structured manner by Tarun Pradhaan a guru and master on the Path of Knowledge.
इस पुस्तक का ध्येय, भारतीय ऋषियों मुनियों द्वारा अन्वेषित एवं उद्घाटित, अपने प्राचीन, सनातन, वैदिक, अध्यात्मिक ज्ञान को आज के तथाकथित आधुनिक परिवेश की आवश्यकता अनुसार सरल और सह
इस पुस्तक का ध्येय, भारतीय ऋषियों मुनियों द्वारा अन्वेषित एवं उद्घाटित, अपने प्राचीन, सनातन, वैदिक, अध्यात्मिक ज्ञान को आज के तथाकथित आधुनिक परिवेश की आवश्यकता अनुसार सरल और सहज रूप में उपलब्ध कराना है। मानव जीवन बहुमूल्य है। आनंद और मुक्ति का मार्ग इसी जीवन द्वारा प्रशस्त होता है। परन्तु भौतिक जीवन-शैली की चकाचौंध और उसे प्राप्त करने की भाग दौड़ में, वास्तविक उन्नति से हटकर अस्त-व्यस्त हो गया है। जिस कारण से एक संतुलन की अति आवश्यकता है।
"ज्ञानमार्ग : दीक्षा – पाठ्यक्रम : एक विलक्षण आध्यात्मिक पद्धति " पाठकों को जीवन की उत्कर्ष उपलब्धियों की ओर ले जाने का एक प्रयास है। पाठकों को अवश्य लाभ होगा, ऐसा विश्वास है।
A human being that has realised their true nature and abides in it, becomes eternally free from all bondages, ignorance and suffering. We often refer to such beings as self-realised, awakened or enlightened. Whatever term we may choose to describe them, such beings have shed all the ignorance and their life is characterised by simplicity and freedom. The Path of Knowledge explored in this book provides guidance to an ardent seeker to discover and realise th
A human being that has realised their true nature and abides in it, becomes eternally free from all bondages, ignorance and suffering. We often refer to such beings as self-realised, awakened or enlightened. Whatever term we may choose to describe them, such beings have shed all the ignorance and their life is characterised by simplicity and freedom. The Path of Knowledge explored in this book provides guidance to an ardent seeker to discover and realise their true "Self" as well as understand various aspects of this Existence. This knowledge is based on ancient wisdom which has been shared in a clear, structured manner by Tarun Pradhaan a guru and master on the Path of Knowledge.
भारत भूमि पर जन्म लेना गर्व की बात है। सौभाग्य है। क्योंकि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म से जुड़ाव हमें विरासत में मिल जाता है। ये पुस्तक भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की मुख्य वि
भारत भूमि पर जन्म लेना गर्व की बात है। सौभाग्य है। क्योंकि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म से जुड़ाव हमें विरासत में मिल जाता है। ये पुस्तक भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की मुख्य विशेषताओं की संक्षिप्त जानकारी प्रदान करती है, जो आज के समय में अति आवश्यक है। इस सनातन परंपरा और ज्ञान के प्रभाव से हमारा मानव जीवन उच्च आदर्शों के साथ व्यतीत होता है। ये उच्च आदर्श हमारे जीवन की दशा और दिशा निर्धारित करते हैं। विश्वास है कि आप सब सुधि पाठक इसका लाभ अवश्य लेंगे।
इस पुस्तक का ध्येय, भारतीय ऋषियों मुनियों द्वारा अन्वेषित एवं उद्घाटित, अपने प्राचीन, सनातन, वैदिक, अध्यात्मिक ज्ञान को आज के तथाकथित आधुनिक परिवेश की आवश्यकता अनुसार सरल और सह
इस पुस्तक का ध्येय, भारतीय ऋषियों मुनियों द्वारा अन्वेषित एवं उद्घाटित, अपने प्राचीन, सनातन, वैदिक, अध्यात्मिक ज्ञान को आज के तथाकथित आधुनिक परिवेश की आवश्यकता अनुसार सरल और सहज रूप में उपलब्ध कराना है।
मानव जीवन बहुमूल्य है। आनंद और मुक्ति का मार्ग इसी जीवन द्वारा प्रशस्त होता है। परन्तु भौतिक जीवन-शैली की चकाचौंध और उसे प्राप्त करने की भाग दौड़ में, वास्तविक उन्नति से हटकर अस्त-व्यस्त हो गया है। जिस कारण से एक संतुलन की अति आवश्यकता है।
"ज्ञानमार्ग - एक विलक्षण आध्यात्मिक पद्धति " पाठकों को जीवन की उत्कर्ष उपलब्धियों की ओर ले जाने का एक प्रयास है। पाठकों को अवश्य लाभ होगा, ऐसा विश्वास है।
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