आधुनिकता की आँधी में निरन्तर बहती चली जा रही नयी पीढ़ी भारतीयता से दूर होती चली जा रही है। अतः सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति के नववाहकों के लिए मार्गदर्शिका सिद्ध हो सकती है य
“सप्तशती” नाम से सर्वसाधारण का ध्यान सबसे पहले श्रीदुर्गा सप्तशती नामक देवीचरित पर ही जाता है, तत्पश्चात् एक और बहुचर्चित सप्तशती का ध्यान आता है – श्रीमद्भगवद्गीता का। च
शास्त्र कहते हैं कि सृष्टि त्रिगुणात्मिका है - सत्त्व, रज, तम तीन प्रकार की ऊर्जाओं वाली, तीन प्रकार के गुणों वाली। स्पष्ट है कि सृष्टि में जो कुछ भी होगा, इन्हीं तीन गुणों में किसी
दुनियादारी वाले प्यार में शरीर की प्रधानता होती है । संसार में ज्यादातर ऐसा ही हुआ करता है। देह से शुरु होकर देह पर ही खतम हो जाता है प्यार । प्यार एकदम नश्वर है । इसकी कोई गारन्टी
सूर्यविज्ञान, सूर्यतन्त्र, सावित्रीविद्यादि विषयक अनेक प्राचीन एवं नव्य ग्रन्थ उपलब्ध हैं, किन्तु विशिष्ट विद्वतापूर्ण होने के कारण सामान्य जिज्ञासुओं के लिए पर्याप्त-दुरु
वर्तमान समाज में तन्त्र को लेकर कई प्रकार के भ्रम और शंकायें हैं। ये वस्तुतः तन्त्र का दोष नहीं ,बल्कि तन्त्र के जानकारों की अज्ञानता है। असली तन्त्र-साधकों और जानकारों का बिलकु
भोंचूशास्त्री एक शाश्वत-सनातन बिम्ब का नाम है, जो आज के जमाने में यदाकदा ही कहीं प्रतिविम्बित हो पाता है । ईश्वरीय गुण स्वरुप ये वरदान मिला हुआ तो सबको है, एकदम जन्म के साथ-साथ ही,
पृथ्वी पर ब्राह्मणों का एक वर्ग है जिसे शाकद्वीपीय ब्राह्मण के नाम से जाना जाता है। यूँ तो ये पूरे भारत में रहते हैं,किन्तु इनकी संख्या विहार में विशेष कर मगधक्षेत्र में अधिक है
अधूरीपतिया की अपनी कहानी किसी अधूरेपन की कहानी ही क्या हो सकती है? कहानी तो पूरेपन की होती है। फिर भी, है कुछ, जिसे आपसे कह देना जरुरी-सा लग रहा है। एक बहुत बड़ा वर्ग है,जो आत्मा को न
मकड़ी जाले बुनती है- छोटे-छोटे कीट-पतंगों को फंसाने के लिए, जो कि कालान्तर में उसका आहार बनते हैं, किन्तु ध्यान रहे जाल बुनने वाली मकड़ी अपने ही जाले में कदापि नहीं उलझती ; परन्तु इ
सामाजिक,धार्मिक,राजनैतिक विविध विसंगतियों में सहज शान्ति की तलाश वाला मन जब हिरण की तरह कुलांचे नहीं भर पाता, बल्कि बकरियों की तरह मिंमियाने लगता है, तब कुछ कहने की विकलता और विव