मकड़ी जाले बुनती है- छोटे-छोटे कीट-पतंगों को फंसाने के लिए, जो कि
कालान्तर में उसका आहार बनते हैं, किन्तु ध्यान रहे जाल बुनने वाली मकड़ी
अपने ही जाले में कदापि नहीं उलझती ; परन्तु इन्सान ख़ुद के ही बुने
जाले में निरंतर फंसता चला जाता है । और कमाल की बात तो ये है कि उसे
पता भी नहीं चलता या पता चलता है जब, तबतक बहुत देर हो चुकी रहती है। कुछ
ऐसी ही बातों पर आधारित है यह प्रेमकथा ।