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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
पूरी ज़िन्दगी अपने प्रिय जनों के जीवन में खुशियाँ भरने में हम इतने मशगूल हो जाते हैं कि खुद के दिल की हसरतें अधूरी रह जाती हैं I जीवन के अंतिम पड़ाव पर यही ख्वाहिशें, यादों से
पूरी ज़िन्दगी अपने प्रिय जनों के जीवन में खुशियाँ भरने में हम इतने मशगूल हो जाते हैं कि खुद के दिल की हसरतें अधूरी रह जाती हैं I जीवन के अंतिम पड़ाव पर यही ख्वाहिशें, यादों से अपने खो चुके लम्हों का हक मांगने के लिए कराह उठती हैं और ज़िन्दगी से सवाल करती हैं कि कब तक अपनी चाहतों को दूसरों की ख़ातिर नीलाम करते रहोगे और खुद के लिए जीना कब शुरू करोगे...
समाज में जो कुछ भी घटित हो रहा है उससे प्रत्येक व्यक्ति किसी ना किसी रूप से जरूर प्रभावित होता है । येह बात अलग है कि आज की भाग दौड़ भरी जिन्दगी में कभी वह अपना विरोध अथवा समर्थन दर्
समाज में जो कुछ भी घटित हो रहा है उससे प्रत्येक व्यक्ति किसी ना किसी रूप से जरूर प्रभावित होता है । येह बात अलग है कि आज की भाग दौड़ भरी जिन्दगी में कभी वह अपना विरोध अथवा समर्थन दर्ज करवा देता है और कईं बार वह मजबूरीवश मौन रह जाता है । हालांकि भरतीय संविधान ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रत्येक भारतीय नागरिक को प्रदान किया है लेकिन फिर भी ना जाने क्यूँ समाज में घटित हो रही घटनाओं के प्रति हम कभी कभी मूक दर्शक से बन जाते हैं। कई मर्तबा संवेदनशील मुद्दों पर आँख मूंद लेना और तमाशबीन बने रहना हमारे समाज के प्रति कर्तव्यों पर प्रश्नचिंह भी लगाता है । वर्ष 2020 मे समाज में घटित हुई कुछ घटनाओं ने मेरे मन को उद्वेलित किया और उन्हीं घटनाओं को शब्दों में पिरोकर पाठकों के समक्ष इस संकलन के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूँ । मेरे इन विचारों को राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित कर मुझे गौरवान्वित किया। आशा है वर्ष 2020 की मुख्य घटनाओं के प्रति मेरी अभिव्यक्ति को प्रबुद्ध पाठकों द्वारा समर्थन किया जाएगा ।
समाज में रिश्ते नाते निभाते तमाम जिन्दगी यूँ गुजर जाती है कि खुद की हसरतें किताबों में बंद शुष्क पुष्पों तरह हो जाती है I उम्र बीत जाने के बाद यही सूख चुके फूलों की पंखुडियां कर
समाज में रिश्ते नाते निभाते तमाम जिन्दगी यूँ गुजर जाती है कि खुद की हसरतें किताबों में बंद शुष्क पुष्पों तरह हो जाती है I उम्र बीत जाने के बाद यही सूख चुके फूलों की पंखुडियां कराहते हुए अपनी अधूरी चाहतों का हिसाब मांगती हैं, ऐसे में एहसास होता है कि अपने रिश्ते नाते निभाए तो जरूर पर उनकी कीमत खुद की चाहतें दूजों पर अपना अनमोल जीवन कुरबान कर की गई Iजीवन के अंतिम पड़ाव में जब खुद को अकेला पाते हैं तो यही शुष्क फूलों की महक सवाल करती है कि जो पास होकर भी जो ना रहे दिल के करीब रखा उन्ही रिश्ते नातों ने क्यूँ सदा जीवन में इक अल्पविराम ? जिन अपनों की खातिर सर्वस्व कुर्बान किया तो व्याकुल मन को एहसास हुआ कि यहाँ तो हर शख्स रिश्ता निभा रहा था सिर्फ खुदगर्जी की खातिर कि ना जाने कब कहाँ किस से क्या काम पड जाए I
उम्र के इस पड़ाव में अब खताओं का हिसाब रखें तो शेष जीवन भी बेरौनक सा हो जाता है I इसीलिए व्यथित मन फिर से खुद को परख लेने की चाह देता है क्योंकि जरूरी नहीं कि रिश्तों में सदा ही अल्पविराम रखा जाए I
अधूरी चाहतों की कशमकश का यह शोर सांसों की रफ़्तार तक ही कायम रहता है I ख्वाब कहते हैं चाहतों की खातिर हदें भी कर जाओ पार पर हक़ीकत बताती है उसूल में रहे हैं जो शख्स मुमकिन वही कर पाए हैं मुक़ाम I मेरे सपनों की कश्ती में हक़ है तुम्हारा ख़्वाबों में मेहमान बन कर आना अब तकलीफ़ देता है !
आशा करता हूँ सरलता से पिरोये गए मेरे ये ज़ज्बात प्रबुद्ध पाठक जन के मन में रेशम से रिश्तों के अल्पविराम को सहजता से पूर्णविराम दे पाएंगे I आपकी मूल्यवान प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी I
पूरी ज़िन्दगी हम अपने प्रिय जनों के जीवन में खुशियाँ भरने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि खुद के दिल की हसरतें अधूरी ही रह जाती हैं I अगर मालूम हो कि अपनों को प्यार करने में दर्द
पूरी ज़िन्दगी हम अपने प्रिय जनों के जीवन में खुशियाँ भरने में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि खुद के दिल की हसरतें अधूरी ही रह जाती हैं I अगर मालूम हो कि अपनों को प्यार करने में दर्द मिलता है तो कोई भी दीवानगी में खुशी खुशी फना ना हुआ करता I अपनों का प्यार वो फूल की तरह होता है जिसकी महक कभी कम नहीं होती I यह प्यार तो उस शुष्क पुष्प की तरह होता है जो सदा दिल रूपी किताबों में सबसे छिपा कर यादों में महफूज़ रखा जाता है I सांसों के सुर ताल के साथ इस प्रेम गीत का गुन्जन दिल की धड़कन के साथ महसूस किया जा सकता है I जीवन के अंतिम पड़ाव पर अधूरी ख्वाहिशें, यादों से अपने खो चुके लम्हों का हक मांगने के लिए कराह उठती हैं और ज़िन्दगी से सवाल करती हैं कि कब तक अपनी चाहतों को दूसरों की ख़ातिर नीलाम करते रहोगे और खुद के लिए जीना कब शुरू करोगे I खुद के साथ इसी तरह का संवाद करते हुए मैंने जीवन के पलों में अपने जाज्बातों की कलम से कुछ अल्फाज़ पिरोए हैं I इस तरह के मन के भावों को प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन काल में कभी न कभी अवश्य महसूस करता है I आशा करता हूँ जितनी सरलता से मैंने अपने ज़ज्बातों को इस कविता संग्रह में पिरोया है उतनी ही सहजता से आप प्रबुद्ध पाठक जन अपनी यादों में सहेज कर रखेंगेI
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