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alpviraam / अल्पविराम Alpviraam

Author Name: Munish Bhatia | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details

समाज में रिश्ते नाते निभाते तमाम जिन्दगी यूँ गुजर जाती है कि खुद की हसरतें किताबों में बंद शुष्क पुष्पों  तरह हो जाती है I उम्र बीत जाने के बाद यही सूख चुके फूलों की पंखुडियां कराहते हुए अपनी अधूरी चाहतों का हिसाब मांगती हैं, ऐसे में एहसास होता है कि अपने रिश्ते नाते निभाए तो जरूर पर उनकी कीमत खुद की चाहतें दूजों पर अपना अनमोल जीवन कुरबान कर की गई Iजीवन के अंतिम पड़ाव में जब खुद को अकेला पाते हैं तो यही शुष्क फूलों की महक सवाल करती है कि जो पास होकर भी जो ना रहे दिल के करीब रखा उन्ही रिश्ते नातों ने क्यूँ सदा जीवन में  इक अल्पविराम ? जिन अपनों  की खातिर सर्वस्व कुर्बान किया तो व्याकुल मन को एहसास हुआ कि यहाँ तो हर शख्स रिश्ता निभा रहा था सिर्फ खुदगर्जी की खातिर कि ना जाने कब कहाँ किस से क्या काम पड जाए I 

उम्र के इस पड़ाव में अब खताओं का हिसाब रखें तो शेष जीवन भी बेरौनक सा हो जाता है I इसीलिए व्यथित मन फिर से खुद को परख लेने की चाह देता है क्योंकि जरूरी नहीं कि रिश्तों में सदा ही अल्पविराम रखा जाए I

अधूरी चाहतों की कशमकश का यह शोर  सांसों की रफ़्तार तक ही कायम रहता है I ख्वाब कहते हैं चाहतों की खातिर हदें भी कर जाओ पार पर हक़ीकत बताती है उसूल में रहे हैं जो शख्स मुमकिन वही कर पाए हैं मुक़ाम I मेरे सपनों की कश्ती में हक़ है तुम्हारा ख़्वाबों में मेहमान बन कर आना अब तकलीफ़ देता है  !

आशा  करता हूँ सरलता से पिरोये गए मेरे ये ज़ज्बात प्रबुद्ध पाठक जन के मन में रेशम से रिश्तों के अल्पविराम को सहजता से पूर्णविराम दे पाएंगे I आपकी मूल्यवान प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी I

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मुनीष भाटिया

मुनीष भाटिया 

जन्म: 24 मई 1973 

स्थान: यमुनानगर (हरियाणा)

शिक्षा: वाणिज्य स्नातक  

उपलब्धियां: विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित आलेख एवं कविताएँ  प्रकाशन: एक कविता संग्रह “तुम्हारी यादें” एवं तीन लघु-कविता संग्रह  “जीना कब शुरू करोगे”, “प्रिय उम्मीद” और “इश्क की  कहानियां” 

सम्पर्क: 585 स्वास्तिक विहार पटियाला रोड, जीरकपुर   (मोहाली) पंजाब

178, सेक्टर 2, अर्बन एस्टेट, कुरुक्षेत्र (हरियाणा)

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