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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal'हस्त-अक्षर' को 'हस्ताक्षर' में बदलने का प्रयास ही हमारा मूल मक़सद है ! Read More...
'हस्त-अक्षर' को 'हस्ताक्षर' में बदलने का प्रयास ही हमारा मूल मक़सद है !
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'षड यात्रा' विशुद्ध रुपें एक संस्मरणात्मक पोथी अछि ।मानवक जीवन सेहो एक प्रकार के यात्रा अछि,जाहि यात्रा के क्रम मे ओकरा बहुत किछु देखवा मे अवैत छैक। कहीं आनन्दक लहरि सॅं ओ सुख
'षड यात्रा' विशुद्ध रुपें एक संस्मरणात्मक पोथी अछि ।मानवक जीवन सेहो एक प्रकार के यात्रा अछि,जाहि यात्रा के क्रम मे ओकरा बहुत किछु देखवा मे अवैत छैक। कहीं आनन्दक लहरि सॅं ओ सुख के अनुभव करैत अछि त' कहुखन ओकरा अतिशय दारुण दु:ख के घड़ी मे जाय लेल विवश होमय पड़ैत छैक।वस्तुत: प्राणी के सुख और दु:ख ओकर कर्म जनित फल के भोग थिक।एहि पर स्थापित प्रस्तुत पोथी मे छ: गोट संस्मरण पर आधारित यात्रा के वर्णन कएल गेल अछि। छबो यात्रा अत्यंत शिक्षाप्रद अछि। शक्ति पीठ के उत्पत्ति तथा अंतिम संस्कार के पश्चात मुक्ति के वास्ते गया मे पिंडदानक महत्व के देखाओल गेल अछि।ओहि प्रकारे धरणी पर कलियुग के समय मे कलियुग रहित क्षेत्र नैमिषारण्यक वर्णन निसंदेह रोमहर्षक भेल अछि।आधुनिक समय मे हवाई यात्रा सहज भ' गेल अछि मुदा जिनका पहिल वेर एहि पर चढबाक मौका भेटैत अछि त' ओकरा लेल वस्तुत: कौतूहल के विषय रहैत अछि ,जकर वर्णन एहि पाठ मे कएल गेल अछि। भारतवर्ष के तीर्थक देश कहल गेल अछि। एहि ठाम अनेको तीर्थ अछि,जतय तीर्थयात्री पहुॅंच अपन अंत:करण के स्वच्छ करैत छथि। ओहि मे सॅं वृन्दावन,मथुरा,बैष्णवदेवी के दर्शनक सांगोपांग वर्णन कएल गेल अछि। ताजमल के निर्माणक रहस्य के संग ओकर सुन्दरता के विषय मे वर्णन नीक भेल छथि।
यात्रा के पराव कवि अपन धर्म पत्नी के शव यात्रा सॅं करैत छथि। एहि पाठ में मुख्य रुपें पूर्व जन्म मे कयल गेल भगवती के आराधना के एहि जन्म मे निरुपण करबाक चेष्टा देवीभागवत मे प्रतिपादित सूत्र के आधार पर कएल गेल अछि।अंतत: ई पोथी यात्रा के माध्यमे जीवन के सच्चरित्र बनेबाक एक सफल प्रयास अछि।
प्रस्तुत पोथी ” गंगा के किछोर सँ “ एक मैथिलीक काव्य संग्रह अछि।चुँकि हमर आवास पटना मे गंगा के किछोर मे अवस्थित अछि, जाहि ठाम सँ एहि पुस्तक के रचना कएल गेल । अस्तु एकर नाम “ गंग
प्रस्तुत पोथी ” गंगा के किछोर सँ “ एक मैथिलीक काव्य संग्रह अछि।चुँकि हमर आवास पटना मे गंगा के किछोर मे अवस्थित अछि, जाहि ठाम सँ एहि पुस्तक के रचना कएल गेल । अस्तु एकर नाम “ गंगा के किछोर सँ “ राखब उचित बुझलहुँ।पोथी मे कुल १६६ गोट कविता संकलित अछि ।
साहित्यकार अपन साहित्य के रचना करबा काल मुख्य रूप सँ वातावरण,परिस्थिति, समय, पात्र सँ प्रभावित भ’ रचना करैत छथि।‘ गंगा के किछोर सँ ‘ काव्य संग्रह के रचना सेहो किछु एहि तरहक परिवेश मे भेल। हमर धर्म पत्नी संजुला कुमारी मिश्रा अल्प आयु मे चलि बैसलीह। हुनक वियोग हमर आत्मा के ततेक प्रभावित कएलक जकर प्रस्फुरन कविता रूपी सरिता स्वत:नि:सृत होमए लागल । उपर वर्णित कविता के चारि खण्ड मे विभाजित कएल गेल अछि ।
प्रथम खण्ड के नाम “ धर्म खण्ड “ राखल गेल अछि । एहि खण्ड मे मुख्य रूप सँ सनातन धर्म पर आधारित कविता के रचना भेल अछि। दोसर खण्ड के “ संस्मरण खण्ड “ के नाम सँ संम्बोधित कएल गेल । एहि खण्ड मे पत्नी के वियोग मे जे रचना कएल गेल छल तकरा सजाओल गेल । तेसर खण्ड के “ मर्म खण्ड “ कहब युक्ति संगत लागल । एहि खण्ड के अन्तर्गत ओहन कविता के राखल गेल अछि जे मार्मिक अछि।
पोथी के अंतिम खण्ड के “ कर्म खण्ड “ संज्ञा देल गेल अछि। जाहि मे कविता के माध्यम सँ कवि समाज के संदेश देमय चाहैत छथि जे कर्तव्य के प्रधान मानि जीवन यापन करी । नहिं कि भाग्य भरोसे बैसल रही ।
अंतत: हम कहि सकैत छी जे “ गंगा के किछोर सँ “ पोथी के सभ कविता रोचक, धार्मिक,हृदयविदारक,राष्ट्रीय,भावपूर्ण,संदेशात्मक,
कर्तव्यसूचक और प्रेरणादायक अछि ।
कितनी आश्चर्य की बात है, नहीं ! एक रचनाकार कई महीनों या कई वर्ष लगाकर एक पूरी किताब तैयार करता है इसबीच वो कई तरह के अनुभवों से गुज़रता है सहता है लिखता है फ़िर पढ़ता है और पढ़कर फ़िर से प
कितनी आश्चर्य की बात है, नहीं ! एक रचनाकार कई महीनों या कई वर्ष लगाकर एक पूरी किताब तैयार करता है इसबीच वो कई तरह के अनुभवों से गुज़रता है सहता है लिखता है फ़िर पढ़ता है और पढ़कर फ़िर से परिस्थिति को महसूस करता है । इनसब प्रक्रिया के बीच एक रचनाकार काफ़ी आनंद भी लेता है । पर जब बारी उस किताब का दो-शब्द या भूमिका लिखने कि आती है तो उसे समझ नहीं आता रहता है कि ऐसा क्या लिखूँ जिसमें पुस्तक का निचोर आ जाये ।
हालाँकि, ये संभव नहीं है ख़ासकर एक कवि के लिए क्योंकी कविता प्रत्येक शब्द के साथ व्यक्ति और उस व्यक्ति के परिस्थति के अनुसार ठीक ऐसे ही अपना अर्थ बदलता रहता है जैसे बारिश की बूँदें बरसती तो एक जैसी ही है पर जमीं पर आते ही उस बूँद का उपयोगिता बदल जाता है ।
तो, बिना किसी साहित्यिक भाषणों के आपलोगों एक ऐसे प्रेम के पथ पर ले चलते है जहाँ व्याकरण और वर्णित अशुद्धि रूपी कई कंकर-पत्थर और और न जाने कितने काँटे से होकर गुज़रना परेगा हालाँकि, प्रेम और परेशानी एक-दूसरे का पर्यावाची ही है और वैसे भी ये प्रेम कभी नियम माना कहाँ है !
संवेदना भी संवेदनशील को तभी ज़िन्दा रख पाती हैं जब बड़े हो रहे मन और सख्त हो रहे शरीर के मध्य मासूमियत से भरी मुस्कान जिंदा हो ।
आपके मुस्कान को ज़िन्दा रखने के लिए मेरे कलम की न
संवेदना भी संवेदनशील को तभी ज़िन्दा रख पाती हैं जब बड़े हो रहे मन और सख्त हो रहे शरीर के मध्य मासूमियत से भरी मुस्कान जिंदा हो ।
आपके मुस्कान को ज़िन्दा रखने के लिए मेरे कलम की नींब ने भर सक प्रयास किया है फिर भी आपकी मुस्कान को मेरे व्याकरण और वर्णित अशुद्धि आपको किसी भी रूप में ठेस पहुँचाई हो तो मैं तहे दिल से क्षमा-प्राथी हूँ ।
आशियाना-जिस तरह किसी मकान को घर बनाने के लिए परिवार कि ज़रूरत होती है,उसी तरह हर इन्सान को एक आशियाने कि ज़रूरत होती है।आशियाना मतलब घर ,और घर तब तक घर नहीं होता है जब तक कि वहां सबों
आशियाना-जिस तरह किसी मकान को घर बनाने के लिए परिवार कि ज़रूरत होती है,उसी तरह हर इन्सान को एक आशियाने कि ज़रूरत होती है।आशियाना मतलब घर ,और घर तब तक घर नहीं होता है जब तक कि वहां सबों के बीच प्रेम कि धारा न बहती हो,ठीक इसी प्रकार आशियाना भी तब पूर्ण होता है जब उस नगरी में आशिक हो।ऐसा आशिक जो दीवानगी फैला दे,इश्क़ के नाम पर फ़रेब नहीं सब को प्यार करना सिखा दे,सब को जवां दिल बना दे और सब को मिला के पुरे संसार को एक परिवार बना दे।आशिक़ी एक ऐसा जुनून है जिसकी जुनूनियत का कोई हद नहीं।आशिक तो बेगाने होते है, सच कहूँ तो परवाने होते हैं, ना सुबह कि फिक्र होती है ना शाम का पता वो तो बस प्यार के एहसास में खोये रहते हैं।
जिस प्रकार हीरे कि परख जोहरी को होती है उसी प्रकार प्रेम को पहचानने कि परख एक आशिक़ को होती है,आज के दौड़ में आशिक तो बहुत मिल जाते है कसमे भी बहुत खाते है और वादे भी बहुत कर जाते हैं पर निभाते वही हैं जो सच्चे आशिक होते हैं ,सच्चे आशिक कभी धोखा नहीं देते क्योंकि वे जानते हैं धोखे का दर्द होता है क्या नैया को मजधार में छोड़ने से होता है क्या !
इस जीवन रुपी नैया में “आशियाने” का बड़ा ही मोल होता है | घर तो बन जाते हैं चंद रुपयों में पर “आशियाना” बनाने में बड़ा ही मोल लगता है क्योंकि वो अनमोल होता है ।
संवेदना भी संवेदनशील को तभी ज़िन्दा रख पाती हैं जब बड़े हो रहे मन और सख्त हो रहे शरीर के मध्य मासूमियत से भरी मुस्कान जिंदा हो ।
संवेदना भी संवेदनशील को तभी ज़िन्दा रख पाती हैं जब बड़े हो रहे मन और सख्त हो रहे शरीर के मध्य मासूमियत से भरी मुस्कान जिंदा हो ।
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