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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalBorn in Simdega (Jharkhand) on September 1969, Vandna Tete is a prominent Indian Adivasi writer. She writes in Hindi and Kharia and is an ardent proponent and pioneer advocate of tribal philosophy and literature. Creativity: Editor of contemporary social discourse magazine 'Tana-Bana', children's magazine 'Patang' (Udaipur) and sub-editor of Jharkhand Movement magazine 'Jharkhand Khabar' (Ranchi). Editing and publication of quarterly multilingual Adivasi-indigenous magazine 'Jharkhandi Bhasha Sahitya Sanskrit Akhra', Kharia monthly magazine 'Sorinaning' and Nagpuri monthly 'Johar Sahia'. FRead More...
Born in Simdega (Jharkhand) on September 1969, Vandna Tete is a prominent Indian Adivasi writer. She writes in Hindi and Kharia and is an ardent proponent and pioneer advocate of tribal philosophy and literature.
Creativity: Editor of contemporary social discourse magazine 'Tana-Bana', children's magazine 'Patang' (Udaipur) and sub-editor of Jharkhand Movement magazine 'Jharkhand Khabar' (Ranchi). Editing and publication of quarterly multilingual Adivasi-indigenous magazine 'Jharkhandi Bhasha Sahitya Sanskrit Akhra', Kharia monthly magazine 'Sorinaning' and Nagpuri monthly 'Johar Sahia'. Founder General Secretary of the Adivasi and indigenous literary-cultural organization 'Jharkhandi Bhasha Sahitya Sanskrit Akhra' (2004).
Publications: 'Purakha Larake' (ed.), 'Kiska Raj Hai', Jharkhand Ek Anthin Samargatha '(coauthor),' 'Purakha Jharkhandi Sahityakar Aur Naye Sakshatkar' (ed.), 'Asur Siring' (ed.), 'Adima Raag' (ed.), 'Konjoga', 'Alice Ekka Ki Kahaniyan' (ed.), 'Pralap' (ed.), 'Adivasi Darshan Aur Sahitya' (ed.), 'Vachicata: Adivasi Darshan, Sahitya Aur Saundaryabodh', 'Lokpriya Adivasi Kahaniyan' (ed.), 'Lokpriya Adivasi Kavitayen' (ed.), and 'Hindi Ki Aarambhik Adivasi Kahaniyan' (ed.).
Contact : toakhra@gmail.com
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आदिवासी दर्शन, समाज, भाषा-संस्कृति और साहित्य से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर सुप्रसिद्ध आदिवासी लेखिका और आदिवासियत की पैरोकार वंदना टेटे की यह चौथी पुस्तक है। यह किताब उन दिनों तै
आदिवासी दर्शन, समाज, भाषा-संस्कृति और साहित्य से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर सुप्रसिद्ध आदिवासी लेखिका और आदिवासियत की पैरोकार वंदना टेटे की यह चौथी पुस्तक है। यह किताब उन दिनों तैयार की गई है जब ‘पत्थलगड़ी’ का मुद्दा रांची से लेकर दिल्ली के मीडिया की सुर्खियों में था। झारखण्ड और छत्तीसगढ़ की राजनीति में हड़कंप मचा हुआ था। इस पूरे शोरशराबे में लोगों का ध्यान पहली बार इस परंपरा पर गया। पत्थलगड़ी की परंपरा का जितना महत्व राजनीतिक है, उससे कहीं ज्यादा महत्व ऐतिहासिक और साहित्यिक है। यानी ‘पत्थलगड़ी’ ऑरेचर (वाचिकता) की साहित्यिक परंपरा के सबसे पुराने दस्तावेज हैं जो पाषाणकाल में पुरखों द्वारा तो लिखे ही गये, आज भी आदिवासी समाजों में सामूहिक तौर पर लिखे जा रहे हैं। अपनी इस नई पुस्तक में लेखिका ने बहुत ही विस्तार से ऑरेचर की परंपरा और पत्थलगड़ी की विरासत पर प्रकाश डाला है।
इस किताब में आदिवासी लेखक और बुद्धिजीवी कहते हैं-‘‘इतना तो हम जानते हैं कि इस धरती का स्वामी मानव नहीं है। मानव का धरती से सिर्फ एक नाता है। इतना तो हम जानते हैं कि सभी चीजें आप
इस किताब में आदिवासी लेखक और बुद्धिजीवी कहते हैं-‘‘इतना तो हम जानते हैं कि इस धरती का स्वामी मानव नहीं है। मानव का धरती से सिर्फ एक नाता है। इतना तो हम जानते हैं कि सभी चीजें आपस में ऐसे जुड़ी हैं जैसे खून एक परिवार को जोड़ता है। सभी चीजें- सभी एक-दूसरे से जुड़ी हैं। जो कुछ पृथ्वी के साथ घटित होता है, वही पृथ्वी की संतानों के साथ घटित होता है। मानव ने जीवन का ताना-बाना नहीं बुना। वह तो इस ताने-बाने का एक तन्तु मात्र है। इस ताने-बाने के साथ जो भी वह करता है, वह अपने साथ करता है।’’
गीताश्री उरांव, रोज केरकेट्टा, ग्लैडसन डुंगडुंग, जोवाकिम तोपनो, गंगा सहाय मीणा , डॉ. सावित्री बड़ाईक, वंदना टेटे, रेमिस कंडुलना, सेम तोपनो, अनुज लुगुन, वाल्टर भेंगरा ‘तरुण’, डॉ. रामदयाल मुंडा , कृष्णमोहन सिंह मुंडा , जयपाल सिंह मुंडा, रोस्के-मार्टिनेज और सिएटल के रेड इंडियन मुखिया के ‘आदिवासियत’ संबंधी लेखों का पठनीय व संग्रहणीय हिंदी संकलन।
आदिवासी दर्शन, वैचारिकी और साहित्य पर वंदना टेटे की सैद्धांतिक पुस्तक। हिंदी साहित्य में आदिवासी वैचारिकी और विमर्श में हस्तक्षेप करने वाली पहली अवधारणात्मक किताब। आदिवासी
आदिवासी दर्शन, वैचारिकी और साहित्य पर वंदना टेटे की सैद्धांतिक पुस्तक। हिंदी साहित्य में आदिवासी वैचारिकी और विमर्श में हस्तक्षेप करने वाली पहली अवधारणात्मक किताब। आदिवासी दर्शन, सौंदर्यबोध और साहित्य के अध्येताओं के लिए महत्वपूर्ण पुस्तक।
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