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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआदिवासी दर्शन, समाज, भाषा-संस्कृति और साहित्य से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर सुप्रसिद्ध आदिवासी लेखिका और आदिवासियत की पैरोकार वंदना टेटे की यह चौथी पुस्तक है। यह किताब उन दिनों तैयार की गई है जब ‘पत्थलगड़ी’ का मुद्दा रांची से लेकर दिल्ली के मीडिया की सुर्खियों में था। झारखण्ड और छत्तीसगढ़ की राजनीति में हड़कंप मचा हुआ था। इस पूरे शोरशराबे में लोगों का ध्यान पहली बार इस परंपरा पर गया। पत्थलगड़ी की परंपरा का जितना महत्व राजनीतिक है, उससे कहीं ज्यादा महत्व ऐतिहासिक और साहित्यिक है। यानी ‘पत्थलगड़ी’ ऑरेचर (वाचिकता) की साहित्यिक परंपरा के सबसे पुराने दस्तावेज हैं जो पाषाणकाल में पुरखों द्वारा तो लिखे ही गये, आज भी आदिवासी समाजों में सामूहिक तौर पर लिखे जा रहे हैं। अपनी इस नई पुस्तक में लेखिका ने बहुत ही विस्तार से ऑरेचर की परंपरा और पत्थलगड़ी की विरासत पर प्रकाश डाला है।
वंदना टेटे
सितंबर, 1969 को सिमडेगा (झारखंड) में जन्मी वंदना टेटे एक प्रमुख भारतीय आदिवासी लेखिका हैं। आप हिंदी एवं खड़िया में लेखन करती हैं तथा आदिवासी दर्शन और साहित्य की प्रखर प्रस्तावक और अगुआ पैरोकार हैं।
कृतित्व: सामाजिक विमर्श की पत्रिका ‘समकालीन ताना-बाना’, बाल पत्रिका ‘पतंग’ (उदयपुर) का संपादन एवं झारखंड आंदोलन की पत्रिका ‘झारखंड खबर’ (राँची) की उप-संपादिका। त्रैमासिक बहुभाषायी आदिवासी-देशज पत्रिका ‘झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा’, खड़िया मासिक पत्रिका ‘सोरिनानिङ’ तथा नागपुरी मासिक ‘जोहार सहिया’ का संपादन और प्रकाशन। आदिवासी और देशज साहित्यिक-सांस्कृतिक संगठन ‘झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा’ (2004) की संस्थापक महासचिव।
प्रकाशन: ‘पुरखा लड़ाके (सं.)’, किसका राज है’, ‘झारखंड एक अंतहीन समरगाथा’ (सहलेखन), ‘आदिवासी साहित्य: परंपरा और प्रयोजन’, ‘कोनजोगा’, ‘पुरखा झारखंडी साहित्यकार और नए साक्षात्कार’, ‘असुर सिरिंग’, ‘आदिम राग’ (सं.), ‘एलिस एक्का की कहानियाँ’ (सं.), ‘प्रलाप’ (सं.), ‘आदिवासी दर्शन और साहित्य’ (सं.), ‘वाचिकता: आदिवासी दर्शन, साहित्य और सौंदर्यबोध, ‘लोकप्रिय आदिवासी कहानियाँ’ (सं.) ‘आदिवासी दर्शन कथाएँ’, ‘लोकप्रिय आदिवासी कविताएँ’ (सं.) और ‘हिंदी की आरंभिक आदिवासी कहानियाँ’ (सं.)।
संप्रति: झा.भा.सा.सं. अखड़ा और प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन, राँची के साथ सृजनरत।
संपर्क: toakhra@gmail.com
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