अन्तस्ताप वह तरल लावा है जो मन के किसी कोने से स्रावित होकर पूरे शरीर में संचरित हो जाता है। यह कभी हमारे रक्त में उबाल लाता है तो कभी इसकी तपिश के सामने हमारी नशों में बहता हुआ �
चूंकि भूतकाल से वर्तमान और वर्तमान से भविष्य काल की बुनियाद पड़ती है इसलिए अपने इतिहास को विस्मृत कर बेहतर भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। 'माटी का अभिनंदन' काव्यांजलि उन
"उम्मीद का दिया" काव्य संग्रह में संकलित रचनाएं मानव जीवन की जटिलताओं, विसंगतियों और दिन प्रतिदिन घर गृहस्थी में जुटे आम आदमी की पीड़ाओं को देखकर- सुनकर आहत कवि की भावना काव्य का र�
मनुष्य को न तो कभी मंजिल मिलती है और न ही कभी रास्ते खत्म होते हैं। और अधिक पाने की चाहत में मनुष्य एक मंजिल मिलते ही किसी दूसरी मंजिल को पाने के लिए नए रास्तों पर चल पड़ता है। मनुष्�
ज़िंदगी की अजब दास्ताँ है,
कब्र ही इसका अन्तिम मकाँ है।
कल की खातिर दिखे भागता आदमी,
ना जाने किसका गुमाँ है।।
मानव का सच्चा साथी वह स्वयं खुद ही होता है। लेकिन अहंकार भाव के वशीभूत होकर वह स्वयं से ही रूबरू नहीं हो पाता। अहंकार भाव से मुक्त होकर जब कभी भी मानव मुक्त हृदय हो एकाग्रचित्त हो�