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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Pal
तुम कौन हो? यह एक मात्र ऐसा प्रश्न है, जिसे प्रेम कहानी में किसी एक पक्ष से पूछा ही जाता हैं। केशव! आखिर तुम कौन हो? यूं तो अनजान हो, मगर जाने पहचाने से लगते हो। यूं तो कोई रिश्ता नहीं
तुम कौन हो? यह एक मात्र ऐसा प्रश्न है, जिसे प्रेम कहानी में किसी एक पक्ष से पूछा ही जाता हैं। केशव! आखिर तुम कौन हो? यूं तो अनजान हो, मगर जाने पहचाने से लगते हो। यूं तो कोई रिश्ता नहीं हैं हमारे बीच में, मगर फिर भी तुम मुझे वर्षो पुराने से लगते हो। आखिर तुम कौन हो, जिसके ख्याल मुझे सोने नही देते, क्यूं तुम्हारे चेहरे मेरे आखों से सामने से ओझल ही नही होते। सच कहो! तुम कौन हो?
वो कहते हैं ना! की प्रेम होने के पश्चात् कोई फर्क ही नहीं पड़ता की आखिर तुम कौन हो? तुम कौन हो, तुम क्या हो, तुम क्यों हो? तुम्हारी जाति क्या हैं? तुमरी औकात क्या हैं? तुम कितना कमा लेते हो? या तुम क्या करते हो? ये सभी प्रश्न बस एक बेतुकी बात सी लगने लगी हैं, जब आपको सच में किसी से सच्ची मोहब्बत हो जाती हैं।
यह पुस्तक इन्ही प्रश्नों से शुरू हुई एक प्रेम कहानी से जुड़ी हुई हैं। जिस प्रेमी जोड़े का नाम अंकिता और अनुराग था। अंकिता और अनुराग की भी मुलाकात इसी प्रश्न के साथ हुआ था की तुम कौन हो? इस कहानी को मैं वास्तविक तो बिलकुल नही कह सकता हूं मगर हां इस कहानी को काल्पनिक कहना भी सही नही होगा। यह कहानी काल्पनिक जरूर हैं, मगर मुझे यकीन हैं इस पढ़ने के मध्य में इस कहानी के वास्तविक रूप को खुद में जरूर महसूस करेंगे।
दूनियाँ की परिधि समिति है समाज, बन्धिशे,कलंक, अफवाह, इत्यादि ,अक्सर सभी कहते है कि दूनियाँ प्रेम से चलती है इस सृष्टि को प्रेम से ही चलाया जा सकता है । लेकिन जब बात प्रेम - विवाह कि आ
दूनियाँ की परिधि समिति है समाज, बन्धिशे,कलंक, अफवाह, इत्यादि ,अक्सर सभी कहते है कि दूनियाँ प्रेम से चलती है इस सृष्टि को प्रेम से ही चलाया जा सकता है । लेकिन जब बात प्रेम - विवाह कि आती है तो यह बन्धन, रीति-रिवाजों, जातिवाद सब आ जाते है बीच मे और प्रेम रह जाता है बस नाम का उस वक्त कोई यह नही कहता है कि बात प्यार की है या सब शान्ति से सुलझा दिया जाये।
उस वक्त नजर आती है प्रतिष्ठा,मान - सम्मान और स्वाभिमान और यह भी सब लिखे गये है लड़कीयो के हिस्से अब इन्हे कोई यह नही समझा सकता की उस लड़की ने प्रेम एक लड़के से ही किया है वो किसी लड़के के साथ सम्बन्ध बनाकर ही बिन ब्याही माँ बनी है । लेकिन नजर आती है सिर्फ वो बेबस लड़की जिसपे समाज,रिश्तेदार चाहे कुछ भी बोल दे वो खामोशी से सुन लेगी और पी जायेगी एक युद्ध की त्रासदी जैसा अपमान का घुट अब सोचने की बात यह है, कि जब हम प्रेम को स्वीकार नही कर सकते । उसे समाज से,दूनियादारी से ऊपर नही रख सकते तो फिर प्रेम जैसे पवित्र शब्द का खोखला गुणगान करना व्यर्थ है।
राधाकृष्णन,हीर - राँझा,रोमियो - जुलियट ऐसी न जाने कितनी ही अमर प्रेम कहानियाँ हुई है मगर यह सब रही है अधुरी आखिर क्यो ?
इसका सीधा सा जवाब है "हम सब " जब हम किसी बात को मान नही सकते उसका साथ नही दे सकते तो फिर हम दुसरो को यह क्यो कहते है कि ऐसा होने दो या यह हो जाने दो माना कि प्रेम मे कुछ सीमाएँ निश्चित की जाती है । लेकिन प्रेम को अस्वीकार करना यह तो गलत है हमारा समाज सिर्फ आधुनिक होने का दिखावा करता है।
यह मेरी पहली पुस्तक है, अगर आपकों लिखना पसंद है तो यह पुस्तक जरूर पढ़े। इस पुस्तक में आपको मिलेगा कि एक नया लेखक किस अंदाज में लिखता है। आज नहीं तो कल कभी ना कभी आप लोग भी अपनी रचनाएँ
यह मेरी पहली पुस्तक है, अगर आपकों लिखना पसंद है तो यह पुस्तक जरूर पढ़े। इस पुस्तक में आपको मिलेगा कि एक नया लेखक किस अंदाज में लिखता है। आज नहीं तो कल कभी ना कभी आप लोग भी अपनी रचनाएँ साँझा करेंगे, अगर कभी लिखने का विचार हुआ तो इस पुस्तक के माध्यम से आपको लिखने के लिए एक नई दिशा मिलेंगी। कोई भी लेखक जन्मजात रचनाओं को नहीं रचता हैं। पता नहीं कब और कैसे इतना लिख लेता है, कि उसकी लिखावट उसकी हीं सोच सें परे हों जाती है।
मैं चाहता हूँ! कि आप भी लिखें, लिखने सें आपके अन्दर दबकर दम तोड़ रही भावनाएं प्रकट होती है। कई बार आपको जानने वाले भी आपके प्रति नकारात्मक सोच रखने लगते है, उनपे ध्यान ना देते हुये मस्तिष्क में बिखरे पड़े शब्दों कों समेटकर रचनाओं में परिवर्तित करना और उन्हीं रचनाओं कों साझा करने हेतू पुस्तक का निर्माण किया है। आप भी अपने विचारों कों साझा कीजिये। इस पुस्तक निर्माण के प्रति मेरा यह उद्देश्य है, कि अपनी रचनाओं कों एकत्रित करके उन पाठकों तक अपनी रचनाएं पहुचाऊं जो मेरे जैसे हीं लिखते पढ़ते है।
नज़रिये - कुछ अनदेखे,अनकहे,अनजाने से...यह पुस्तक कई लेखकों का सामूहिक प्रयास है। इस संसार की खूबसूरती, जीवन में आने वाले उतार चड़ाव, आस पास घटित होने वाली घटनाएं, प्रेम, बेवफ़ाई और
नज़रिये - कुछ अनदेखे,अनकहे,अनजाने से...यह पुस्तक कई लेखकों का सामूहिक प्रयास है। इस संसार की खूबसूरती, जीवन में आने वाले उतार चड़ाव, आस पास घटित होने वाली घटनाएं, प्रेम, बेवफ़ाई और एसी बहुत सी चीज़ें के एहसास और उनको देखने और परखने के अलग अलग नज़रिये होते हैं।
ज़िंदगी को हर कोई अपने अपने रंग बिरंगे चश्मों से देखता है और हर चश्मा आँखों को अपने रंग मे दुनिया दिखाता है।
हमारी पुस्तक नज़रिये - कुछ अनदेखे, अनकहे, अनजाने से...उन्हीं रंगो को खूबसूरत शब्दों के सांचे मे डाल कर, तराश कर बनी कविताओं के द्वारा पेश करती है।
अगर समस्याए गिनने बैठे तो समस्याओ की कमी नही होगी। किसी मोहल्ले मे अगर आप सभी की समस्या सुनने लगोगे तो निश्चित है कुछ देर के पश्चात आप को रोना भी आ जाएगा। इस संसार मे, हमारे देश, रा
अगर समस्याए गिनने बैठे तो समस्याओ की कमी नही होगी। किसी मोहल्ले मे अगर आप सभी की समस्या सुनने लगोगे तो निश्चित है कुछ देर के पश्चात आप को रोना भी आ जाएगा। इस संसार मे, हमारे देश, राज्य मे, जिले मे, शहर मे, मोहल्ले मे, गावँ मे, गली मे हर जगह कुछ ना कुछ तो समस्या है। इनमे से कुछ समाजिक है और कुछ गृहस्थी की, मगर हाँ समस्या जरुर है। युग कोई भी हो चाहे सतयुग हो, त्रेतायुग हो, द्वापरयुग हो या कलयुग हो लेकिन सभी युगो मे समस्याए जरुर थी। हम तो कलयुग मे जी रहे है जहाँ मुसीबतों की कमी नही है। समय और युग के साथ-साथ समस्याएं भी परिवर्तित होती रहती है।
इस उपन्यास में भी आपको समस्याओं से लड़ना पड़ेगा। कहीं अपने ही परिवार वाले नहीं समझ रहे हैं। कहीं समाज को समझाना मुश्किल हो गया है। समाज में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो घिनौना काम कर, आम आदमी के अंदर भय पैदा कर देते हैं। मगर हर युग में अच्छे लोग भी जरूर जन्म लेते हैं। वे जितना हो सके उतना लोगों का भला करते ही है। कहानी के पात्र आपके इर्द-गिर्द ही मौजूद है। कोई विचारो से अच्छा है तो कोई बुरा है। कहानी में घटित घटनाएं आए दिन हमारे समाज में होती रहती है।
'जब तुम आओगे' इस पुस्तक में आपको जीवन की तरह ही प्रेम की तीन अवस्थाएँ -- आकर्षण, संयोग और वियोग को दिखाने का प्रयास किया है।
जब अधूरी पड़ी ख्वाहिशों में कोई शख्स छोड़ जाता है , तब व
'जब तुम आओगे' इस पुस्तक में आपको जीवन की तरह ही प्रेम की तीन अवस्थाएँ -- आकर्षण, संयोग और वियोग को दिखाने का प्रयास किया है।
जब अधूरी पड़ी ख्वाहिशों में कोई शख्स छोड़ जाता है , तब वह दूसरा शख्स उन अधूरी ख्वाहिशो को अपनी कल्पनाओ में गढ़ता है और इसी चाहत में रहता है कि मैं ये सारी ख्वाहिशों तुम्हे सुनाऊँगा, जब तुम आओगे प्रेम में की गई अटखेलियाँ, जीवन के हर उस मोड़ पर याद आती है जब हम निराशा में घिरे हो। हमारे साथ चाहे कोई जितना भी प्यार करने वाला क्यों ही न हो, लेकिन ये आँखे उसके लिए ही मचलेगी, जिसके लिए दिल में अहसास, आँखों में ख्वाब और जिन्दगी में ख्वाहिशें बची रहती है। जिन्दगी के कुछ चीजे अधूरी रहना ही अच्छा है, जैसे मुलाकाते, बातें,यादें,ख्वाब, ख्वाहिशें और पहली मोहब्बत।
क्योंकि पहली मोहब्बत अधूरी होकर भी मुकम्मल होती है, क्योंकि वो जिन्दगी में हमारा कभी पीछा नहीं छोड़ती,लेकिन जिंदगी में ऐसे शख्स का इंतजार होना चाहिए,जो ख्वाब-ख्वाहिशें न दे, कसमें-वादे न दे। दे सिर्फ तो,वो मोहब्बत उसी मोहब्बत का इंतजार है जब तुम आओगे
इस पुस्तक का नाम मैंने मिस रोज इसलिए रखा है क्योंकि स्कूल के समय में एक लड़का था जो मुझे बहुत ज्यादा पसंद करता था बहुत ही सीधा साधा भोला भाला था, मेरा डेस्कमेट व अच्छा दोस्त था।
इस पुस्तक का नाम मैंने मिस रोज इसलिए रखा है क्योंकि स्कूल के समय में एक लड़का था जो मुझे बहुत ज्यादा पसंद करता था बहुत ही सीधा साधा भोला भाला था, मेरा डेस्कमेट व अच्छा दोस्त था। उसकी फेवरेट फिल्म थी टाइटेनिक और फेवरेट हीरोइन थी उस फिल्म की हीरोइन मिस रोज इसलिए वह प्यार से मुझे इसी नाम से बुलाया करता था। वह क्लास में बैठा बैठा मेरी ड्राइंग बनाता रहता था और उस पर मिस रोज लिखता रहता था, अपनी हर कॉपी किताब के आखिरी पन्ने पर मेरी तारीफो मैं शायरियां लिखता था। उसकी आंखों में मैंने खुद के लिए कई बार प्यार महसूस किया, पर मैं किसी और को पसंद करती थी इसलिए मैं उसके प्यार को स्वीकार नहीं कर पायी।
पर जिंदगी के उस दौर में जब हालातों ने मुझे इस कदर तोड़ा था, कि मैं टूट कर बिखर गई थी इतनी हताश हो गई थी कि जिंदगी के मेरे लिए कोई मायने ही नहीं रह गए थे उस वक्त जब किसी ने महसूस कराया कि मैं भी खूबसूरत हूं तो धीरे-धीरे मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास वापस आ गया।
आसान नहीं है यह जिंदगी का सफर जिन लोगों पर यकीन किया, उन्हें गिरगिट से जल्दी रंग बदलते देखा है मैंने, मैं हंसती रहती हूं, तो लोगों को लगता है - सब ठीक चल रहा है - पर मेरे चेहरे से कभी भी मेरे दर्द नहीं पढ़ पाओगे क्योंकि मुझे तो गम में भी मुस्कुराने की आदत हो गयी है।
तुम कौन हो? यह एक मात्र ऐसा प्रश्न है, जिसे प्रेम कहानी में किसी एक पक्ष से पूछा ही जाता हैं। केशव! आखिर तुम कौन हो? यूं तो अनजान हो, मगर जाने पहचाने से लगते हो। यूं तो कोई रिश्ता नह
तुम कौन हो? यह एक मात्र ऐसा प्रश्न है, जिसे प्रेम कहानी में किसी एक पक्ष से पूछा ही जाता हैं। केशव! आखिर तुम कौन हो? यूं तो अनजान हो, मगर जाने पहचाने से लगते हो। यूं तो कोई रिश्ता नहीं हैं हमारे बीच में, मगर फिर भी तुम मुझे वर्षो पुराने से लगते हो। आखिर तुम कौन हो, जिसके ख्याल मुझे सोने नही देते, क्यूं तुम्हारे चेहरे मेरे आखों से सामने से ओझल ही नही होते। सच कहो! तुम कौन हो?
वो कहते हैं ना! की प्रेम होने के पश्चात् कोई फर्क ही नहीं पड़ता की आखिर तुम कौन हो? तुम कौन हो, तुम क्या हो, तुम क्यों हो? तुम्हारी जाति क्या हैं? तुमरी औकात क्या हैं? तुम कितना कमा लेते हो? या तुम क्या करते हो? ये सभी प्रश्न बस एक बेतुकी बात सी लगने लगी हैं, जब आपको सच में किसी से सच्ची मोहब्बत हो जाती हैं।
यह पुस्तक इन्ही प्रश्नों से शुरू हुई एक प्रेम कहानी से जुड़ी हुई हैं। जिस प्रेमी जोड़े का नाम अंकिता और अनुराग था। अंकिता और अनुराग की भी मुलाकात इसी प्रश्न के साथ हुआ था की तुम कौन हो? इस कहानी को मैं वास्तविक तो बिलकुल नही कह सकता हूं मगर हां इस कहानी को काल्पनिक कहना भी सही नही होगा। यह कहानी काल्पनिक जरूर हैं, मगर मुझे यकीन हैं इस पढ़ने के मध्य में इस कहानी के वास्तविक रूप को खुद में जरूर महसूस करेंगे।
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