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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalWriter, Director and Philanthropist. JV Manisha has been associated with the world of media and creativity for over 4 decades. Her journey started at an early age. Her journey in the creative field started when she participated in school competitions and reached a pinnacle when she recited her poems and created the ‘Praacheer’ of Red Fort. Her association with Doordarshan started as an anchor and later she went on to create the show, ‘Safar Zindagi Ka’, for them which was among the highest TRP show of the time. JV Manisha has been part of multiple TV shows, telefilms, advertisements, eRead More...
Writer, Director and Philanthropist.
JV Manisha has been associated with the world of media and creativity for over 4 decades. Her journey started at an early age. Her journey in the creative field started when she participated in school competitions and reached a pinnacle when she recited her poems and created the ‘Praacheer’ of Red Fort.
Her association with Doordarshan started as an anchor and later she went on to create the show, ‘Safar Zindagi Ka’, for them which was among the highest TRP show of the time. JV Manisha has been part of multiple TV shows, telefilms, advertisements, etc. as an actor, director, producer or writer.
Her empathetic side not only influenced her writing but also got her attached to the various needs and issues faced by elders which led her to establish ‘Harikrit’, an NGO that works in creating a better living environment for elders by advocating and promoting the concept of bridging the inter-generational gap.
JV Manisha has been a prolific writer and has already published 5 books on various emotions and relationships that we go through. Saanjhi Saanjh (Vol - 3) is her sixth publication.
Read Less...Achievements
वक्त के पहिए पर सवार जिन्दगी जिन रास्तों से गुज़रती है वह हर पल एक कहानी से जुड़ते चले जाते हैं अनुभवों की किताब में। जिन्हें पलट कर फिर से पढ़ना] सुनाना या जीना हमेशा अच्छा लगता
वक्त के पहिए पर सवार जिन्दगी जिन रास्तों से गुज़रती है वह हर पल एक कहानी से जुड़ते चले जाते हैं अनुभवों की किताब में। जिन्हें पलट कर फिर से पढ़ना] सुनाना या जीना हमेशा अच्छा लगता है। आइने में रोज देखने के बाद भी अपने चेहरे पर उभरते बदलाव कहां दिखाई पड़ते हैं। ये तो भला हो एलबम में टंकी तस्वीरों का जो चीख-चीख कर बता देतीं हैं कि उम्र चहरे पर कितनी नई लकीरें खींच कर चली गई है। बालों में चांदी भर गई है और समय के ताप में तपा कर समझ को कुंदन कर गई है। बचपन में गिरने या खो जाने के डर से उंगली पकड़ कर चलने वालों की उंगली जब उन्हें गिरने या खो जाने के डर से पकड़नी पड़ती है तो वक्त के पहिए पर सवार जिन्दगी का सफर बिना एहसास दिलाए बीते हुए हर पल एहसास दिला जाता है। कितना आश्चर्यजनक है कि बचपन बच्चा नहीं रहना चाहता और बड़े होने के बाद सभी बचपन की ओर हसरत भरी निगाहों से देखते हैं। सोच कर देखें तो हर रोज़ ऐसा क्या नया था? बस सुबह शाम में और रात सुबह में ही तो बदलती थी रोज, जिसने पूरा का पूरा बदल दिया हम सबको!
वक्त के पहिए पर सवार जिन्दगी जिन रास्तों से गुज़रती है वह हर पल एक कहानी से जुड़ते चले जाते हैं अनुभवों की किताब में। जिन्हें पलट कर फिर से पढ़ना] सुनाना या जीना हमेशा अच्छा लगता
वक्त के पहिए पर सवार जिन्दगी जिन रास्तों से गुज़रती है वह हर पल एक कहानी से जुड़ते चले जाते हैं अनुभवों की किताब में। जिन्हें पलट कर फिर से पढ़ना] सुनाना या जीना हमेशा अच्छा लगता है। आइने में रोज देखने के बाद भी अपने चेहरे पर उभरते बदलाव कहां दिखाई पड़ते हैं। ये तो भला हो एलबम में टंकी तस्वीरों का जो चीख-चीख कर बता देतीं हैं कि उम्र चहरे पर कितनी नई लकीरें खींच कर चली गई है। बालों में चांदी भर गई है और समय के ताप में तपा कर समझ को कुंदन कर गई है। बचपन में गिरने या खो जाने के डर से उंगली पकड़ कर चलने वालों की उंगली जब उन्हें गिरने या खो जाने के डर से पकड़नी पड़ती है तो वक्त के पहिए पर सवार जिन्दगी का सफर बिना एहसास दिलाए बीते हुए हर पल एहसास दिला जाता है। कितना आश्चर्यजनक है कि बचपन बच्चा नहीं रहना चाहता और बड़े होने के बाद सभी बचपन की ओर हसरत भरी निगाहों से देखते हैं। सोच कर देखें तो हर रोज़ ऐसा क्या नया था? बस सुबह शाम में और रात सुबह में ही तो बदलती थी रोज, जिसने पूरा का पूरा बदल दिया हम सबको!
वक्त के पहिए पर सवार ज़िन्दगी जिन रास्तों से गुज़रती है वह हर पल एक कहानी से जुड़ते चले जाते हैं अनुभवों की किताब में, जिन्हें पलट कर फिर से पढ़ना, सुनाना या जीना हमेशा अच्छा लगता है।
वक्त के पहिए पर सवार ज़िन्दगी जिन रास्तों से गुज़रती है वह हर पल एक कहानी से जुड़ते चले जाते हैं अनुभवों की किताब में, जिन्हें पलट कर फिर से पढ़ना, सुनाना या जीना हमेशा अच्छा लगता है। आइने में रोज़ देखने के बाद भी अपने चेहरे पर उभरते बदलाव कहां दिखाई पड़ते हैं। ये तो भला हो एलबम में टंकी तस्वीरों का जो चीख-चीख कर बता देतींहैं कि उम्र चहरे पर कितनी नई लकीरें खीच कर चली गई है। बालों में चांदी भर गई है और समय के ताप में तपा कर समझ को कुं दन कर गई है। बचपन में गिरने या खो जाने के डर से उंगली पकड़ कर चलने वालों की उंगली जब उन्हेंगिरने या खो जाने के डर से पकड़नी पड़ती है तो वक्त के पहिए पर सवार ज़िन्दगी का सफर बिना एहसास दिलाए बीते हुए हर पल एहसास दिला जाता है। कितना आश्चर्यजनक है कि बचपन बच्चा नही रं हना चाहता और बड़े होने के बाद सभी बचपन की ओर हसरत भरी निगाहों से देखते हैं। सोच कर देखें तो हर रोज़ ऐसा क्या नया था? बस सुबह शाम में और रात सुबह में ही तो बदलती थी रोज़, जिसने पूरा का पूरा बदल दिया हम सबको!
लघु कथाओं का संकलन
ईश्वर की मानव रचना की कारीगरी पर नतमस्तक हूं। उन्होंने एक मां को सन्तानोत्पति की क्षमता एक निश्चित आयु तक ही दी जिससे उनकी रचना को यथोचित पालन पोषण व
लघु कथाओं का संकलन
ईश्वर की मानव रचना की कारीगरी पर नतमस्तक हूं। उन्होंने एक मां को सन्तानोत्पति की क्षमता एक निश्चित आयु तक ही दी जिससे उनकी रचना को यथोचित पालन पोषण व संरक्षण मिले। यानि जब संतान को देखभाल की आवश्यकता होती है तब माता पिता में संतान की देखभाल कर पाने की क्षमता होती है पर जब समय आयु को बढ़ाता है तथा संतान युवा हो जाती है और माता पिता वृद्ध, उस समय सन्तान में क्षमता होती है और माता पिता को देखभाल की आवश्यकता।
इसी आवश्यकता की ओर इंगित है यह कहानी संग्रह ‘सांझी सांझ (खंड- २)’। अपने आज के कर्म का यथाशक्ति निर्वहन सुखमय भविष्य की नींव है। इंसान अपने समय अनुसार अपने दायित्व को समझे और स्वालंबी हो कर स्वयं ही जीने की राह खोजे।
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