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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palमानव भावना के रहस्यों को उजागर करने और आध्यात्मिकता के गहन क्षेत्रों की खोज करने के लिए एक अटूट प्रतिबद्धता के साथ, रेवती कांत पाठक ने एक विपुल लेखक के रूप में अपने लिए एक जगह बनाई है, जिनकी रचनाएं आत्मा के सार को छूते हुए केवल शब्दRead More...
मानव भावना के रहस्यों को उजागर करने और आध्यात्मिकता के गहन क्षेत्रों की खोज करने के लिए एक अटूट प्रतिबद्धता के साथ, रेवती कांत पाठक ने एक विपुल लेखक के रूप में अपने लिए एक जगह बनाई है, जिनकी रचनाएं आत्मा के सार को छूते हुए केवल शब्दों से परे हैं।
मिथिला क्षेत्र के पंडितों के आध्यात्मिक परिवार में जन्मे रेवती कांत का प्रारंभिक जीवन हिंदू दर्शन और आध्यात्मिकता के समृद्ध चित्रयवनिका में डूबा हुआ था। इस परवरिश ने आध्यात्मिक और पारलौकिक की खोज के लिए उनके गहरे जुनून की नींव रखी। यहां बुद्धिमान पंडितों के बीच उनकी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हुई, एक यात्रा जो बाद में उनके साहित्यिक प्रयासों की आधारशिला बन गई।
पाठक की साहित्यिक यात्रा ध्यान और आत्म-खोज के माध्यम से प्राप्त गहन अंतर्दृष्टि को स्पष्ट करने की एक गंभीर खोज के साथ शुरू हुई।
उनके पहले के प्रकाशन "वैदिक धर्म के सर्वश्रेष्ठ उद्धारक – उद्यानाचार्य" को मिथिला संस्कृत सोध संस्थान, द्वारा प्रकाशित एक श्रेष्ठ आधुनिक आध्यात्मिक कृति के रूप में सम्मानित किया गया है। इस कृति ने पाठकों को गद्य और पद्य प्रारूप दोनों में एक कठिन वैदिक दर्शन की समझ प्रदान की है।
जबकि, अंग्रेजी में लिखी गई "एथेरियल इन्ट्रीग" ने एक सरल कहानी के माध्यम से आत्मा की यात्रा के सार को, वैदिक दर्शन में उल्लिखित भौतिक दुनिया और पारलौकिक दुनिया के बीच ज्ञान प्राप्त करने वाले पाठकों के साथ तालमेल बिठाया।
जैसे-जैसे उनकी साहित्यिक यात्रा जारी रही, रेवती कांत पाठक ने पुस्तकों की एक श्रृंखला लिखी, जिसमें "सात समुंदर आर पार" (सात समुद्र के पार), "लाल भौजी" "एथेरियल साज़िश" और "वैदिक धर्म के सर्वश्रेष्ठ उद्धारक – उद्यानाचार्य" शामिल हैं।
अन्य कृतियां - 'रेल-दूत', 'स्मृतियां' और 'नारी कभी ना अबला होती' प्रकाशन के अंतर्गत हैं।
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Achievements
कसक नहीं, मेरे दिल में धड़कन की ही टिक टिक है,
सावन-भादो वर्षा है, आसिन में भी किच-किच है।।
मेघदूत! कैसे कह दूँ, सन्देश मेरा भी पहुँचा दो,
हाल मेरा तेरे नायक सा, उलझन मेरा सुलझा
कसक नहीं, मेरे दिल में धड़कन की ही टिक टिक है,
सावन-भादो वर्षा है, आसिन में भी किच-किच है।।
मेघदूत! कैसे कह दूँ, सन्देश मेरा भी पहुँचा दो,
हाल मेरा तेरे नायक सा, उलझन मेरा सुलझा दो ।।
कालिदास के नायक से संवाद तेरा भी भारी है,
वह राजा से बंधित था, तेरी सेवा सरकारी है।।
महा सुख का कमल तो ऐसे सरोवर में ही खिलेगा जो शान्त शीतल और सहज हो जो विधि और निषेध की लहरों से पूर्णतः मुक्त हो कोई कृत्रिमता नहीं कोई विरोध नहीं शास्त्रों की सम्मति एवं महाजनों क
महा सुख का कमल तो ऐसे सरोवर में ही खिलेगा जो शान्त शीतल और सहज हो जो विधि और निषेध की लहरों से पूर्णतः मुक्त हो कोई कृत्रिमता नहीं कोई विरोध नहीं शास्त्रों की सम्मति एवं महाजनों के पदचिह्न तो सामने उत्खचित हैं ही।
पिछले चन्द दशकों से अंग्रेजियत की खुमारी में भारतीयता छटपटा रही है। हमारी सोच प्रदूषित हो गयी है। अहं के द्वन्द्व युद्ध में परिवार टूट गया है। जिस आदर्श व्यक्तित्व से पारिवारिक ढाँचा का स्वरूप सुदृढ़ रह पाता उसको ही तिरस्कृत कर दिया गया है। परिवार के पक्षधर रात-रात भर अतीत के सपनों में कोई नवीन मार्ग निकाल सकें कर्तव्य और अधिकार की सुस्पष्ट व्याख्या कर सकें विभिन्न तर्कों से बनी-बनायी रसोई खाने वालों की यथेष्ट भर्त्सना कर आदर्श व्यक्तियों की पीठ थपथपा सकें तो निश्चित रूप से समाज और राष्ट्र की अटूटता पुनः लीक पर आ जायेगी।
इस लघु काव्य में कुछ इन्हीं स्मृतियों से बुद्धिवादियों को झकझोरने का प्रयास किया गया है। वर्तमान की बांहों में अतीत केा दुलारते हुए भविष्य को संवारने की अनिवार्यता उपनीत की गयी है।
एक ऐसी दुनिया, जहां आधुनिक जीवन का कोलाहल अक्सर आत्मा की फुसफुसाहट को डुबो देता है, वैसे में “श्रीमद्भगवत गीता” प्रकाश की एक किरण के रूप में खड़ी है, जो अपने कालातीत शब्दों और शिक
एक ऐसी दुनिया, जहां आधुनिक जीवन का कोलाहल अक्सर आत्मा की फुसफुसाहट को डुबो देता है, वैसे में “श्रीमद्भगवत गीता” प्रकाश की एक किरण के रूप में खड़ी है, जो अपने कालातीत शब्दों और शिक्षाओं के माध्यम से आंतरिक शांति, ज्ञान और कर्म की ओर साधकों का मार्गदर्शन कराती है।
रेवती कांत पाठक की नवीनतम कृति, "कलियुग में गीता पुनः कहो" श्रीमद भागवत गीता के संस्कृत श्लोकों की काव्यात्मक हिंदी छन्दबद्ध रचना है। इसको आम लोगों द्वारा बड़ी सहजता से भजन-कीर्तन के रूप में गाया जा सकता है।
Life is mortal, no doubt, but the pleasure is immortal. Before the birth of life, there is no accurate location of its state of holding. After death does it absolutely die or does its remaining parts do some mysterious happenings in the infinite sky? What is the justification of birth and death of life? Is there some authority or command post to handle all such phenomenology? Air, light, smell, sorrows, pleasure, and innumerable things are invisible, but our o
Life is mortal, no doubt, but the pleasure is immortal. Before the birth of life, there is no accurate location of its state of holding. After death does it absolutely die or does its remaining parts do some mysterious happenings in the infinite sky? What is the justification of birth and death of life? Is there some authority or command post to handle all such phenomenology? Air, light, smell, sorrows, pleasure, and innumerable things are invisible, but our organs perceive and discern it qualitatively.
It was so arduous and fathomless that different religions and sects were formed to unravel the secret nature of Brahmanda (Universe). All religions and sects have self-possession and belief in the visibility of gods, heavens, and hells.
Therefore, in this book, the author takes the reader on a journey to the Ethereal world to unravel the secret nature of Brahmanda (The Universe), through divergent modus-operandi mentioned in Vedas & and Puranas.
The joyous pilgrimage taken by the characters of this fiction accorded multiple episodes to them for getting over hallucinations related to Hindu Sanskriti, arya-anarya, evolution of Brahmanda, Atma-Parmatma (Supergod), Purush- Prakriti, cause and action policy, hell and heaven, Vaidik and other religion etc.
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