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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh PalShri V.P.Yajurvedi, born on 26th January 1957, obtained his B.E. & M.E. degrees from I.I.T. Roorkee (formerly University of Roorkee). He completed his MBA (Materials Management) degree from IIMM & M.P.Bhoj University, Bhopal. Shri Yajurvedi joined the Indian Ordnance Factories Service (IOFS) in December 1978. After serving Ordnance Factory Board and various ordnance factories in different capacities/positions, he rose in the hierarchy to occupy the prestigious and coveted post of Chairman, Ordnance Factory Board (OFB) & Director General Ordnance factories in the Department of Defence ProductRead More...
Shri V.P.Yajurvedi, born on 26th January 1957, obtained his B.E. & M.E. degrees from I.I.T. Roorkee (formerly University of Roorkee). He completed his MBA (Materials Management) degree from IIMM & M.P.Bhoj University, Bhopal. Shri Yajurvedi joined the Indian Ordnance Factories Service (IOFS) in December 1978. After serving Ordnance Factory Board and various ordnance factories in different capacities/positions, he rose in the hierarchy to occupy the prestigious and coveted post of Chairman, Ordnance Factory Board (OFB) & Director General Ordnance factories in the Department of Defence Production, Government of India.
During his tenure as Member, OFB and Chairman, OFB (2014-17), a new direction was given to the ordnance factories to develop, diversify and enhance production activities which resulted in the turn-around of many factories, with peak production creating a historical record. As a result, OFB Organisation achieved the highest growth during this period.
Shri Yajurvedi also served Ministry of Labour & Employment (MOLE), Government of India as Welfare Commissioner (Head Quarters) and Director from 1996 to 2003 and headed V. V. Giri National Labour Institute (VVGNLI), an Apex Level National institute of MOLE, as Director General from 2009 to 2013. He superannuated from Government service on 31st January 2017.
After his superannuation, Shri Yajurvedi served as Independent Director on the Board of IREL (India) Limited, a CPSU of the Department of Atomic Energy, Government of India from 16th July 2019 to 15th July 2022; wherein he also held the position of the Chairman of Audit Committee, CSR Committee, Nomination & Remuneration Committee and Risk Management Committee.
In addition, he also served as Independent External Monitor (IEM), appointed by Central Vigilance Commission in the Ferro Scrap Nigam Limited, from 09th June 2020 to 08th June 2023 and also in NEEPCO LIMITED, from 01st February 2021 to 31st January 2024. Currently, he is serving as IEM in the Ministry of Health, Government of India and Bharat Dynamics Limited.
During his long service career spanning more than 38 years, Shri Yajurvedi represented Government of India in International Labour Conference and various other conferences, consultations & seminars. He extensively travelled many countries in Asia, Europe and USA for Tripartite Exchanges and signing of Inter-Governmental MOUs & interacted with more than 20 foreign delegations on matters of mutual interest. He has published a number of research articles on labour issues in various journals.
A prolific poet, Shri Yajurvedi has published two books (collection of hindi poems and chhands) under titles “Tum Kar Do Sanket” and “Sugandh Maati Ki”, in addition to editing various books, magazines and journals.
Shri V.P.Yajurvedi is a Life Member of Indian Institute of Materials Management (IIMM). He was conferred Doctor of Philosophy(Ph.D.) (Honoris Causa) in February 2018, by Commonwealth University, Govt. of Tonga.
Read Less...Achievements
गीत की रचना-प्रक्रिया बड़ी विशिष्ट एवं जटिल है। सौन्दर्य के उपासक जब अपनी कल्पना-मूर्ति में प्राण भरते हैं, स्पर्शों में निहित कम्पन को पवित्र नाम देने का प्रयास करते हैं, हृदय
गीत की रचना-प्रक्रिया बड़ी विशिष्ट एवं जटिल है। सौन्दर्य के उपासक जब अपनी कल्पना-मूर्ति में प्राण भरते हैं, स्पर्शों में निहित कम्पन को पवित्र नाम देने का प्रयास करते हैं, हृदय की वीणा से मुखरित होने वाले शब्द जब युवावस्था में पदार्पण करते हैं; उन स्मरणीय क्षणों में, तब, जीवन के रस से अभिसिंचित गीत एवं कविता जन्म लेते हैं।
गीत और कविता की अपनी-अपनी सीमाएँ तथा मर्यादाएँ होती हैं। गीत जहाँ स्वर की परिधि में आबद्ध रहकर, संगीत के साथ लय-बद्ध होकर स्वयं को अभिषिक्त करते हैं, वहीं कविता पद्यात्मकता के आवरण में छन्द और मात्रा के कड़े अनुशासन में रहते हुये पूर्णता प्राप्त करने को बाध्य होती है।
इन्द्रधनुष की सप्तवर्णी रंग – माला ब्रह्मांड-विश्व–संसार में विद्यमान सभी प्रकार के रंगों को परिभाषित करती है – ऐसा हमारा विश्वास है। किन्तु, वास्तव में क्या हम सर्वत्र व्याप्त सभी प्रकार के रंगों को इन्द्रधनुष की सीमा-रेखा में बाँध सकते हैं? क्या असंख्य रंगों को केवल ‘सात रंगों’ में समेटना सम्भव है?
कवि कविता की रचना करते समय जब गहन चिंतन-मनन में लीन होकर अपनी चेतना को केन्द्रित करता है, तो प्रायः अपने आस-पास के परिवेश में उसे शब्द तैरते हुए, विचरण करते हुए दिखाई देते हैं। इन्हीं शब्दों को ग्रहण करके यथासम्भव अपनी क्षमता के अनुसार वह अपनी कविता में उन्हें गढ़ने का प्रयास करता है। परन्तु, क्या यह सम्भव है कि वह सभी तैरते-मचलते हुए शब्दों को पकड़कर छन्द तथा मात्रा के बन्धन में बाँध ले? साथ ही, उनकी चंचल प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, क्या उनकी मौलिकता के साथ यह न्याय-संगत होगा?
और, यहीं से जन्म होता है, कविता के दूसरे – नए स्वरूपों का, जो जाने जाते हैं – गद्यगीत, आधुनिक कविता, अतुकान्त कविता के नाम से। कविता के ये रूप शब्दों की मौलिकता को अक्षुण्ण रखते हुए छन्द एवं मात्राओं की संख्या के बंधनों से पूर्णतः मुक्त होते हैं।
गीत की रचना-प्रक्रिया बड़ी विशिष्ट एवं जटिल है। सौन्दर्य के उपासक जब अपनी कल्पना-मूर्ति में प्राण भरते हैं, स्पर्शों में निहित कम्पन को पवित्र नाम देने का प्रयास करते हैं, हृदय
गीत की रचना-प्रक्रिया बड़ी विशिष्ट एवं जटिल है। सौन्दर्य के उपासक जब अपनी कल्पना-मूर्ति में प्राण भरते हैं, स्पर्शों में निहित कम्पन को पवित्र नाम देने का प्रयास करते हैं, हृदय की वीणा से मुखरित होने वाले शब्द जब युवावस्था में पदार्पण करते हैं; उन स्मरणीय क्षणों में, तब, जीवन के रस से अभिसिंचित गीत एवं कविता जन्म लेते हैं।
गीत और कविता की अपनी-अपनी सीमाएँ तथा मर्यादाएँ होती हैं। गीत जहाँ स्वर की परिधि में आबद्ध रहकर, संगीत के साथ लय-बद्ध होकर स्वयं को अभिषिक्त करते हैं, वहीं कविता पद्यात्मकता के आवरण में छन्द और मात्रा के कड़े अनुशासन में रहते हुये पूर्णता प्राप्त करने को बाध्य होती है।
इन्द्रधनुष की सप्तवर्णी रंग – माला ब्रह्मांड-विश्व–संसार में विद्यमान सभी प्रकार के रंगों को परिभाषित करती है – ऐसा हमारा विश्वास है। किन्तु, वास्तव में क्या हम सर्वत्र व्याप्त सभी प्रकार के रंगों को इन्द्रधनुष की सीमा-रेखा में बाँध सकते हैं? क्या असंख्य रंगों को केवल ‘सात रंगों’ में समेटना सम्भव है?
कवि कविता की रचना करते समय जब गहन चिंतन-मनन में लीन होकर अपनी चेतना को केन्द्रित करता है, तो प्रायः अपने आस-पास के परिवेश में उसे शब्द तैरते हुए, विचरण करते हुए दिखाई देते हैं। इन्हीं शब्दों को ग्रहण करके यथासम्भव अपनी क्षमता के अनुसार वह अपनी कविता में उन्हें गढ़ने का प्रयास करता है। परन्तु, क्या यह सम्भव है कि वह सभी तैरते-मचलते हुए शब्दों को पकड़कर छन्द तथा मात्रा के बन्धन में बाँध ले? साथ ही, उनकी चंचल प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, क्या उनकी मौलिकता के साथ यह न्याय-संगत होगा?
और, यहीं से जन्म होता है, कविता के दूसरे – नए स्वरूपों का, जो जाने जाते हैं – गद्यगीत, आधुनिक कविता, अतुकान्त कविता के नाम से। कविता के ये रूप शब्दों की मौलिकता को अक्षुण्ण रखते हुए छन्द एवं मात्राओं की संख्या के बंधनों से पूर्णतः मुक्त होते हैं।
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