“समाज के एक वर्ग को कठोर श्रम और दासता के बंधन में जकड़ने वाली तथा दूसरे वर्ग को शारीरिक श्रम से सर्वथा छूट, सुख-चैन और पूर्ण अवकाश की सुविधा जुटाने वाली प्रवृत्तियों के प्रमुख कारण कुछ भी क्यों ना हों........परंतु अब यह नितांत स्पष्ट है कि आधुनिक सभ्यता की प्रवृत्तियां तथा क्षमता की पनपती भावना इन दोनों वर्गों में और असमान और अन्यायपूर्व संबंधों को दीर्घकाल तक बने नहीं रहने देंगी । देर सबेर समाज की पुनर्व्यवस्था होना निश्चित है, और अच्छा यही है कि ह