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अगस्त 15 बेशक हिंदुस्तान के इतिहास में एक निर्णायक दिन है, लेकिन यह उपन्यास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का आख्यान नहीं, बल्कि स्वतंत्रता-प्राप्ति के पहले के भारत और आधुनिक भारत के राजनीतिक एवं सामाजिक परिदृश्यों के परस्पर विरोधी अंतर को दर्शाने वाला उपन्यास है। इसमें दो कथावचक हैं; एक हैं कल्याणमजी जिनका जन्म 1922 अगस्त 15 को हुआ और जिन्हें महात्मा गाँधी के जीवन के अंतिम पांच वर्षों में उनके अंतरंग सचिव के रूप में कार्य करने का सुयोग मिला। दूसरी कथावचक है
कुमरी एस. नीलकंठन (1964) का जन्म भारत के दक्षिणी छोर कन्याकुमारी के समीप नागरकोविल में हुआ| इधर तीन सागर की संगम-स्थली और उधर सह्याद्रि की सुरम्य शैलमालाएं दोनों के मध्य सरसब्ज़ वनस्पतियों और पशु-पक्षियों से भरपूर उस आँचल ने नीलकंठन को प्रकृति प्रेमी और कवि-ह्रदय बनाया तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं| कला और संस्कृति के प्रति आसक्ति नीलकंठन को अपने माता-पिता से मिली | फलत: छात्र-जीवन