गीता के प्रत्येक श्लोक की अलग से व्याख्या कर पॅयन उतना ही आधा अधूरा श्रम का हिस्सा माना जाएगा जिसके आधार पर हम बहती गंगा से एक घड़ा पानी भरकर लाते हैं और गंगा की पवित्रता, मलीनता, स्वच्छंदता, सम्प्रिक्तता आदि का दर्शन करने लग जाते हैं | जबकि पानी स्वतः ही शुद्ध ज्ञान का रूपक होते हुए निर्मलता को बनाए रखते हुए सबके मैल को धोकर निकाल बाहर करने का काम करता है; उसी से ईष्ट का अभिषेक और श्री गणेश भी हो जाता है; उसी में तिलांजलि भी पड़ेगी और पुष्पांजलि भी | </