हमारा गुस्सा और घमंड, हमारी इसी सीमित सोच का परिणाम है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम दूसरों से श्रेष्ठ हैं। जब हमारी अपेक्षाएँ पूरी नहीं होतीं या हमें अपमानित महसूस होता है, तो गुस्सा हमारे भीतर जन्म लेता है। लेकिन यदि हम ब्रह्माण्ड के इस विराट परिप्रेक्ष्य में अपने स्थान को देखें, तो हमें महसूस होगा कि हमारा गुस्सा और अहंकार व्यर्थ है। गुस्सा न केवल हमारे मन और शरीर को नष्ट करता है, बल्कि यह हमारे रिश्तों और सामाजिक जीवन को भी प्रभावित करता है। यह