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Koronyakand : ab Hindi me / कोरोण्यकांड : अब हिन्दी में

Author Name: Prajakta Gavhane | Format: Paperback | Genre : Literature & Fiction | Other Details

यह कहानी है जंगल में लॉकडाऊन की। 

कोरोना के आतंक ने समूचे विश्व को उल्टा - पुल्टा कर दिया। शहरों को स्थानबद्ध कर दिया। पैसा और भौतिक उन्नति के पीछे पागलों की तरह दौडने वाले गतिमान इन्सानों के पैरों में मानो बेडियाँ डाल कर उन्हें अवरुद्ध कर दिया। स्पर्श को इतनी अहमियत देने वाला इन्सान स्पर्श से कतराने लगा। उसका भरोसा उठ गया स्पर्श से! विचार - विमर्श होने लगा। लोग कहने लगे कि मनुष्य को प्रकृति की ओर लौट जाना चाहिए।

‘कोरोण्यकांड’ की कहानी आपको ऐसे लोगों से मिलाती है, जो प्रकृति का ही एक हिस्सा है सदियों से! वे प्रकृति की गोद में पले - बढे हैं। वृक्ष - लताएँ - पशु - पंछी उनकी संस्कृति का अविभाज्य अंग हैं। इन लोगों को भी लॉकडाऊन के दिन देखने पडे। 

मराठी भाषा में लिखा गया शायद यह पहला उपन्यास है जो लॉकडाऊन की स्थिति और परिणामों के वास्तव रूप को उजागर करता है। अब हिन्दी अनुवाद के माध्यम से यह उपन्यासिका अपनी भाषिक सीमाओं से परे पहुँच कर एक नए रूप में आपके सामने प्रस्तुत है।

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प्राजक्ता गव्हाणे

पुणे स्थित लेखिका प्राजक्ता गव्हाणे ने जर्मन भाषा और साहित्य में बॅचलर्स तथा मास्टर्स डिग्री प्राप्त की है। उनकी स्कूली शिक्षा ज्ञान प्रबोधिनी के गुरुकुल में हुई। शुरू से ही उन्हें साहित्य के प्रति गहरा लगाव था। गुरुकुल में उनके सृजनात्मक लेखन को उचित प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। कालांतर में उनकी बहुआयामी प्रतिभा काव्य, गीत-लेखन, संपादन, उपन्यास आदि विभिन्न क्षेत्रों में अभिव्यक्ति की राहें खोजती गई। 

उनके द्वारा बनाए गए गानों के अल्बम 'कण्हेरीची फुले' को सन २०१३ में मराठी चित्रपट परिवार द्वारा 'बेस्ट अल्बम ऑफ द ईयर - चित्रपदार्पण पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। उनके द्वारा लिखा हुआ 'मराठी ब्रेथलेस' गाना सन २०१३ में 'लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड्स' में शामिल किया गया जो एक विशेष उपलब्धि है। प्राजक्ता द्वारा मराठी में लिखे गए 'एकदम बिनधास्त' और 'कोरोण्यकांड' यह विशेष उपन्यास है।

एक लेखिका होने के नाते प्राजक्ताजी सोचती हैं कि मात्र कथा-कथन या निवेदन पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि हमें प्रयोगशील दृष्टिकोण को अपनाते हुए ईबुक्स, ऑडिओबुक्स, अनुवाद इ. के माध्यम से साहित्य को पूरे विश्व में उपलब्ध एवं प्रसारित करना चाहिए। प्रादेशिक साहित्य का आस्वादन जागतिक परिप्रेक्ष्य में होना नितांत आवश्यक है।

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