‘मैं किसी कालिदास की मल्लिका नहीं’ प्रेम, विरह और स्त्री-मन की कविताओं का संग्रह है। इन कविताओं के केंद्र में प्रकृति है, प्रेम है, उसकी पुकार है, उससे जन्मी पीड़ा है। प्रेम और उसकी वेदना के बीच हिलोरें खाता द्वंद्व से भरा वह स्त्री-मन भी, जो निरंतर युद्धरत है। न सिर्फ स्वयं से बल्कि प्रेम और सत्य के मार्ग में पड़नेवाली उन तमाम बाधाओं और चुनौतियों से, जो उसे इनमें से एक भी पथ से विमुख करती हों। ये कविताएँ न सिर्फ स्त्री के अपने अस्तित्व की ओर से प्रेम का बयान है