गूगल झूठ नहीं बोलता
आज लिखते हुये मेरी आँखों में आँसू हैं , जिन्हें अभी मैंने अपनी हथेलियों से पोंछा है । यह आसूँ न खुशी के हैं न दर्द के , शायद आनंद के हों अभी आसुओं की परिभाषा कहाँ कर पाया हूँ । क्या करूँ वही लिखता हूँ जो मन में आँखों में हृदय में अविरल किसी धारा सा बह रहा होता है । यह कौन सा स्रोत है , यह कौन सी नदी है जो अविराल प्रवाहमान है ।
देखने में आसूँ एक ही होते हैं देखने वाले की निगाह में । ऊपर वाला वह निगाह बहुत कम लोगों को देता है जो आसुओं की भाषा जानते हैं । यह कुछ वही भाषा है जब माँ घर से बाहर दूर कहीं नौकरी को जा रहे अपने बेटे को आशीर्वाद देते हुये साड़ी के कोर से आँख पोंछते हुये कहती है । मैं रो कहाँ रही हूँ , नहीं मैं रो नहीं रही यह- यह कुछ नहीं है । देखो हाथ लाओ देखो हाथ लगा कर मैं कहाँ रो रही हूँ । जबकि हाथ रखते ही वहाँ नमीं मिल जाती है और कहीं उन आसुओं को महसूस करने के लिए बेटे ने माँ के दिल पर हाथ रख दिया तो बस हिचकियाँ छूट पड़ेंगी और वह कहेगी नहीं मैं रो कहाँ रही हूँ । मेरा बेटा पढ़ने जा रहा है कि मेरे बेटे को अच्छी नौकरी मिली है मैं खुश हूँ । मैं रो कहाँ रही हूँ ।
मेरे मित्र और जानने वाले जो सालों से बस एक लाईन कह देते हैं ‘ मुरली तुम बहुत अच्छा लिखते हों ‘ न जाने मुझ से क्या कराते जा रहे हैं । यह जो “मुरली की दुनियाँ” है , जिसे लाखों ब्लागर की भीड़ में गूगल पढ़ने वालों , समीक्षकों प्रसंसकों के आधार पर सेकेंडों में ढूंढ कर दिखा देता है ‘Post by best bloggers in Hindi’ उनका हृदय से धन्यवाद ।