जे.ई.ई. की तैयारी के अनुभव के आधार पर मैंने पाया कि प्रतियोगी परीक्षाओ में सफलता हेतु हमें कुछ मानसिक पैटर्न्स विकसित करने पड़ते है या सरल शब्दों में "सवाल हल करने की कला" सीखनी पड़ती है.यह कला एक दिन में विकसित नहीं होती अपितु दीर्घ समयावधि में निरंतर अभ्यास करके प्राप्त होती है.
परन्तु हमारी स्कूली शिक्षा पद्धति "रटंत विद्या" के सिद्धांत पर आधारित है जिसमे मुक्त चिंतन तथा समस्या-निवारण कौशल के स्थान पर,जानकारी को बार बार दोहराने का अभ्यास कराया जाता है जो निश्चित रूप से आवश्यक है परन्तु प्रयाप्त नहीं है,क्योंकि स्मृति के साथ -२ मस्तिष्क के अन्य गुणों का विकसित होना भी आवश्यक है.
इसीलिए एक सामान्य छात्र को सवाल हल करने में अत्यंत कष्ट अनुभव होता है क्योंकि उसने इसका अभ्यास नहीं किया है,जबकि एक अन्य छात्र जो बचपन से ही सवालो को हल करने का अभ्यास कर रहा है उसे सवाल हल करने में कोई विशेष कष्ट नहीं होता तथा वह सरलता से प्रश्नो को हल कर लेता है तथा प्रतियोगिता परीक्षाओ में विशिष्ट स्थान प्राप्त करता है.
अतः प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता हेतु "सवाल हल करने की कला" में पारंगत होना परमावश्यक है.
इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य एक सामान्य छात्र को सवाल हल करने की कला सिखाना है जिससे एक सामान्य छात्र भी प्रतोयोगिता परीक्षा में आये हुए सवाल हल कर सकें तथा जीवन में सफलता प्राप्त कर सकें.