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"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palआज के युग में, जहाँ विकास को केवल GDP, अवसंरचना और प्रतिस्पर्धा से मापा जाता है, स्थितप्रज्ञ – विकसित भारत की आधारशिला यह प्रश्न उठाती है कि क्या भारत बिना आत्मिक परिपक्वता के सचमुच “विकसित” हो सकता है? यह पुस्तक बताती है कि असली प्रगति बाहर की नहीं, भीतर की भी होनी चाहिए—एक ऐसा मानस जो स्थिर, सजग, करुणामय और नैतिक हो।
लेखक अनुपम श्रीवास्तव वेदों के सनातन ज्ञान, गीता के स्थितप्रज्ञ पुरुष और पुराणों की प्रतीकात्मक शिक्षाओं को आधुनिक संदर्भों में नया अर्थ देते हैं। वे दिखाते हैं कि हिन्दू परंपराएँ केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि ऐसी पद्धतियाँ हैं जो मस्तिष्क को एकाग्र करती हैं, आत्मानुशासन सिखाती हैं और जीवन दृष्टि को परिष्कृत करती हैं।
यह पुस्तक हर उस व्यक्ति के लिए है जो राष्ट्र निर्माण में भागीदार बनना चाहता है—माता-पिता, शिक्षक, व्यवसायी और साधक सभी। स्थितप्रज्ञ – विकसित भारत की आधारशिला हमें भीतर झाँकने और यह समझने का आमंत्रण देती है कि विकसित भारत की असली नींव स्मार्ट सिटी या डिजिटल इंडिया नहीं, बल्कि जागरूक, सजग और नैतिक नागरिक हैं।
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Your review has been deleted and won’t appear on the book anymore.अनुपम श्रीवास्तव
अनुपम श्रीवास्तव नेतृत्य विकास, रूपांतरणात्मक मार्गदर्शन, सामाजिक सेवा, मनः-कोचिंग और आध्यात्मिक अन्वेषण के क्षेत्र में भार दशकों का अनुभव रखने बाले बहुआयामी पेशेवर हैं। ब्रिटेन और भारत में कार्य करते हुए उन्होंने आधुनिक मनोविज्ञान को प्राचीन भारतीय ज्ञान से जोड़ा और व्यक्तियों को समन्वित, प्रभावी व नैतिक रूप से सशक्त बनाने में योगदान दिया। सामाजिक कार्यकर्ता और परामर्शदाता के रूप में उन्होंने असहाय बच्चों, संकटग्रस्त परिवारों और विद्यार्थियों को सहयोग दिया, अनगिनत पेशेवरों को प्रशिक्षित किया तथा राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त परामर्श कार्यक्रम विकसित किए। उन्होंने अपनी एक काउंसलिंग संस्था को ब्रिटिश एसोसिएशन फॉर काउंसलिंग एंड साइकोथेरेपी के मानकों से जोड़ा। 2003 में उन्होंने यूके में एकॉर्न फॉस्टरिंग सर्विस लिमिटेड की स्थापना की और बाद में भारत में इनसाइट लाइफ कोचिंग सर्विसेज शुरू की।
उद्यमिता और मार्गदर्शन में समान रूप से प्रतिष्ठित अनुपम ने दिखाया कि कोचिंग, सशक्तिकरण और नैतिक आधरण स्थायी प्रगति का आधार हैं। उपनिषदों, भगवङ्गीता और आदि शंकराचार्य के आजीवन विद्यार्थी तथा स्यामी चिन्मयानंद सरस्वती से प्रेरित होकर अनुपम आध्यात्मिक ज्ञान को तर्कपूर्ण और वैज्ञानिक दृष्टि से देखते हैं। वैदिक साहित्य की सांकेतिक भाषा को समकालीन जीवन के लिए व्यावहारिक, आत्मीय और रूपांतरकारी बनाना उनकी विशेषता है। अपने कार्य और साधना के माध्यम से वे राष्ट्र-निर्माण के एकीकृत दृष्टिकोण का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं-सामाजिक सेवा, नैतिक नेतृत्व और आंतरिक विकास को जोड़कर सुदृद्ध व्यक्तित्व और जागरूक, करुणाशील समाज का निर्माण करते हैं।
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