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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palइस उपन्यास में सुग्रीव एक धीर-गम्भीर चिन्तक के रूप में दर्शाये गये हैं। वानर संस्कृति का प्रतीक ‘‘सुग्रीव उपन्यास’’ के प्रारम्भ में असहाय, भयभीत, ईर्षालु एवं राज्यलिप्सा से भरा व्यक्तित्व बाद में जाकर धीर, गम्भीर एवं विवेकशील व्यक्तित्व बन जाता है। वह समस्त उपन्यास में देव संस्कृति का समर्थक रहा है। इसी कारण बालि और रावण की मैत्री उसकी एक मात्र चिन्ता रही है। उसे भय है कि रावण सम्पूर्ण भू खण्ड को अपने अधिकार में ले लेगा एवं वानर राज्य ही समाप्त कर देगा। इसलिए उसका एक उद्देश्य है- वानर राज्य की सुरक्षा तथा निरन्तर उत्कर्ष वानर अपनी भोगवादी संस्कृति त्याग कर सत्य के प्रकाश की ओर बढ़ सके।
‘हनुमान’ उपन्यास की भाँति ही लेखक ने राक्षस, मानव एवं वानर संस्कृति का विशद् विवेचन करने के साथ सुग्रीव के सम्पूर्ण चरित्र का विशद चित्रण किया है।
पं. जनार्दन राय नागर
पं. जनार्दन राय नागर का जन्म उदयपुर में 16 जून, 1911 ई. को हुआ। बहुआयामी प्रतिभा के धनी पं. नागर ने शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति व समाज सेवा आदि क्षेत्रों में अपनी अमिट कीर्ति स्थापित की। गाँधीवादी संस्कारों से दीक्षित व कथा सम्राट प्रेमचन्द्र के आशीष पात्र रहे जनार्दन राय नागर ने मेवाड़ में शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से 1937 में हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना रात्रिकालीन संस्थान के रूप में की। पं. नागर की सतत् तपस्या के परिणाम स्वरूप इस संस्था की उत्तरोत्तर प्रगति हुई। वर्तमान में जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विष्वविद्यालय, उदयपुर रूपी वटवृक्ष के रूप में स्थापित है।
शिक्षा की लोक साधना में लीन जनार्दनराय नागर की ऐकान्तिक साधना साहित्य-सृजन के रूप में निरन्तर गतिमान रही। उन्होंने उपन्यास, कहानी, गद्य-गीत, जीवन चरित्र व काव्य विधाओं में लेखन किया। उनके द्वारा रचित ‘जगद्गुरू शंकराचार्य’ जो कि 5,500 पृष्ठों में समाहित दस उपन्यासों की श्रृंखला है, हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। उनके ‘राम-राज्य’ के पांच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। चार गद्य-गीत संग्रह, नागर की कहानियां शीर्षक से दो कथा संग्रह प्रकाशित हुए हैं। उनके नाटक ‘आचार्य चाणक्य’, पतित का स्वर्ग’, ‘ऊदा हत्यारा’, ‘जीवन का सत्य’, अत्यन्त चर्चित रहे तथा मंचित भी हुए।
पत्रकारिता के क्षेत्र में पं. नागर ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं की स्थापना, संपादन व संचालन में योगक्षेम निर्वहन किया। ‘मुधमती’, ‘स्वर मंगला’, ‘नखलिस्तान’, ‘बालहित’, ‘कल्कि’, समाज शिक्षण’, ‘शोध पत्रिका’, ‘वसुन्धरा’, ‘जन मंगल’, ‘जन सन्देश’ व ‘अरावली’ आदि पत्रिकाएं उनकी कीर्ति पताकाएं हैं।
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