"अधूरी परछाई" इस संकलन के माध्यम से अपने विचारों को सांझा करने और उन्हें हमारे जीवन में विविध प्रकार के अनुभवों से भरने का एक ईमानदार प्रयास है। लेखन हमेशा से हमारा शौक और जुनून रहा है जिसने हमारी गहरी भावनाओं को कागज पर उतार दिया और आखिरकार इस पुस्तक का आकार ले लिया।
संपादक (अनमोल चुघ दिलदर्द) ने इस पुस्तक का नाम "अधूरी परछाई" रखा क्योंकि हमारी परछाई भी हमारे साथ कहाँ जाती है? अंधेरा होते ही गायब हो जाती है और भोर होते ही आ जाती है।