दर्पण माँ का प्रतिबिंब
बेटियां माँ का प्रतिबिंब बन, घर में सुख के दीप जलाया करती है। माँ बेटी का रिश्ता आज से नहीं अपितु अनंत काल से चला आ रहा है। बेटियां माँ की परछाई के समान होती है। माँ से संस्कार प्राप्त कर जिस घर में गृहलक्ष्मी के रूप में प्रवेश करती है उस घर की झोली को खुशियों से भर देती है। परन्तु बहुत खेद की बात है कि एक ओर हम बेटियों को देवी का दर्जा दे रहे है और दूसरी ओर हम बेटियों का ही शोषण कर रहे है। रोज अखबार में बेटियों पर हो रहे शोषण की खबरें मिलती है। यह कैसा समाज है जहाँ एक तरफ हम नवरात्रि में कन्या पूजन करते है और दूसरी तरफ बेटी होने पर हम गर्भपात करवा देते है।
"दर्पण- माँ का प्रतिबिंब" पुस्तक के माध्यम से हमने समाज की उन ज्वलंत समस्याओं को उभारा है। आशा करते है इस पुस्तक में निहित कृतियाँ पढ़कर हमारे समाज में कुछ बदलाव आयेगा।