शिक्षा, संघ (संगठन) और संघर्ष (बुराइयों से) किसी भी समाज के लिए वह रक्षा कवच रहा है जिसे धरण करके कोई सभ्य समाज अपने मान, आत्मसम्मान, स्वाभिमान तथा अपनी पीड़ी के भविष्य के गौरव को अक्षुण रखकर उस पीड़ी को प्रेरणा दे सकता है।
जब भारत का स्वतन्त्रता आंदोंलन अपने चरम पर था तथा निर्णायक मोड़ पर पहुँच रहा था और लग रहा था की भारत माँ को अब आज़ादी मिलने ही वाली है, लेकिन तब भी किसी ने नहीं सोचा था कि भारत भूमि तो अंग्रेजों के राज से मुक्ति पा जाएगी किन्तु क्या भारत में हिंदुओं के बीच उस बहुसंख्यक समाज को भी आज़ादी की सांस लेने आज़ादी मिल जाएगी जो सदियों सी गुलामों से भी बदतर ज़िंदगी जीने को मजबूर है।
इस पुस्तक के माध्यम से हम यहाँ इन्हीं तीन मूल मंत्रों पर प्रकस डालने का प्रयास करेंगे। हम जानेंगे कि शिक्षा आखिर क्या है पौराणिक काल से लेकर आज आधुनिक शिक्षा ने क्या क्या पड़ाव देखे हैं। और अब आई नई शिक्षा नीति क्या है, किस तरह से यह भावी पीड़ी के लिए लाभदायक होगी तथा क्या इससे भारत फिर से विश्व गुरु बनेगा।
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