सौमित्र की कविताओं का मैं पाठक रहा हूँ -वह भी लम्बे समय से। कह सकते हैं कि मैंने सौमित्र की प्रारंभिक कविताएँ पढ़ी हैं और उनके क्रमिक विकास से परिचित हूँ । उसी आधार पर मैं यह कह रहा हूँ कि सौमित्र मूलतः रिश्तों के कवि हैं। भाई-बहन, मौसी-माँ-पिता जैसे आत्मीय संबंधों को वे जीते हैं और इस बहाने समय की विडम्बना के बीच सबको याद करते हैं। इस याद में कवित्त की संरचना अपना रूप लेती है जिसमें दुःख है, पीड़ा है-पर हाहाकार रूप में नहीं। मौन रूप में जो गहनता होती है वह हाहाकार में ख़त्म हो जाती है। सौमित्र रिश्तों के साथ जगहों को खूब याद रखते हैं-एक मॉडल बना लेते हैं जैसे 'भोपाल कभी नहीं गया,' कविता में-फिर वे उसके मार्फ़त शहरों के साथ इंसान के अंदर पल-पल बदल रहे रिश्ते की अमूर्त जुगराफिया को जबान देते हैं। कह सकते हैं सौमित्र की कविताओं में स्थानीयता का भारी महत्त्व है। और कहा भी जाता है कि जो स्थानीय है वह अंततः पूरे विश्व-फ़लक की यात्रा का सामर्थ्य रखता है। सौमित्र अपने अग्रज कवियों में वीरेन डंगवाल की तरह हर विषय में कवित्त तलाश लेते है- कैंसर जैसा असाध्य रोग हो या विज्ञान की क्वांटम भौतिकी-उसमें काव्य रोशनी इस तरह डालते हैं कि उसमें प्राण-वायु की तरंगें फूटने लगती हैं। अपनी काव्य परम्परा के साथ, जीवन के बग़ल नहीं, वरन उसमें धँसकर चलने वाले कवि सौमित्र की कविता में सुख भी है, दुःख भी है, आशा भी है, निराशा भी, लेकिन पस्ती और शिकस्त से वे गुरेज़ रखते हैं। यही उनकी कविता की ताकत है।
-हरि भटनागर