स्वामी निरंजन देव तीर्थ, गोवर्धन मठ के १४४ वें शंकराचार्य थे। वे औदिच्य कुल के ब्राह्मण थे तथा उनका नाम श्री चंद्रशेखर दवे था। श्री चंद्रशेखर दवे ने वाराणसी आदि क्षेत्रों में विद्याध्ययन किया । वे व्याकरण के मूर्धन्य विद्वान् एवं चिकित्सा शास्त्र के मर्मज्ञ मनीषी थे । चरक संहिता इत्यादि आयुर्वेद के ग्रंथ को पढ़ाने में भी दक्ष थे । उन्होंने विद्यार्थी जीवन में धर्म सम्राट् स्वामी श्री करपात्री जी से वेदांत के मूर्धन्य ग्रंथ खंडन खंड खाद्य का अध्ययन किया था । उन्होंने धर्मशास्त्र का विधिवत् अध्ययन और अनुशीलन किया था । दर्शन शास्त्र में भी उनकी अद्भुत गति थी । साथ ही साथ गुजराती, राजस्थानी, हिंदी, संस्कृत , भोजपूरी और इंग्लिश में वे अपने मनोभावों को दक्षता पूर्वक व्यक्त करने में समर्थ थे ।