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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palमै तेजी से दौड़ रहा हॅूं.......... मैं रूकना चाहता हॅं, फिर भी रूक नहीं पा रहा हॅूं.........मेरी गति और तेज हो रही है..... इतनी रात को मै किस ओर दौड़ रहा हॅूं........यहां तो जंगल ही जंगल हैं..... पत्तों की खरखराहट मेरे दौड़ने के कारण मेरे कानों तक पहुंच रही है......ये तो वही जंगल है, जहां पिछली रात सपने में मेरी ट्रेन रूकी थी.....ये कैसे संभव है, वो तो स्वप्न था, और आज मै दौड़ कर उसी स्थान पर आ रहा हॅूं..... इसका मतलब कि उस ओर कोई बैठा ‘‘ओम’’ स्वर के साथ साधना कर रहा होगा.....हां उसी ओर मुड़कर देखना होगा.....मैने अपने तेजी से भागते हुए पैरों को उस ओर मोड़ दिया।सामने वही मैदान दिखाई देता है, जहां सामने विशाल बरगद के पेड़ के नीचे एक मानव आकृति ‘‘ओम ’’ ध्वनि के साथ साधना कर रही है।अचानक उस आकृति से निकलता प्रकाश तेज होना शुरू होता है। ओह अब मैं इतनी तेज रोशनी के कारण देख भी नहीं पा रहा हॅूं ,.....मै आंखे क्यों नही खोल पा रहा हॅूं....
अचानक से तिलक आंखे खोलता है, फिर हांफता, घबड़ाया और पसीने से भीगा हुआ उठकर बैठ जाता है। तिलक अब इन स्वप्नों के रहस्य को समझ नहीं पा रहा था, किन्तु वो ये समझ चुका था कि ये साधारण आने वाले स्वप्न नहीं है।
21वीं सदी के साफ्टवेयर इंजीनियर ‘‘तिलक’’ का इन स्वप्नों से क्या संबंध है? क्या इस आधुनिक युग में वह इन सब पर विश्वास कर पाता है ?
इस तरह के कई स्वप्न कई दिनों तक आने और उनका एक दूसरे से संबंध भी होने के रहस्य को क्या तिलक समझ पाएगा। एक साफ्टवेयर इंजीनियर अविश्वसनीय घटना के घटित होने से कैसे योगिक शक्तियों को प्राप्त करता है।
साधारण तिलक से ‘‘तिलकयोगी’’ बनने की यात्रा को जानने के लिए प्रस्तुत है, -----------
21वीं सदी का सुपरहीरो -‘‘तिलकयोगी’
अभिषेक श्रीवास्तव
जबलपुर (मध्यप्रदेश) निवासी, डाॅ अभिषेक श्रीवास्तव एक प्रतिष्ठित महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं। कुछ ही समय में इन्होंने वर्तमान दौर के भारतीय लेखकों में अपना एक स्थान बना लिया है। लेखक अपने पिता डाॅ संतशरण श्रीवास्तव को अपना प्रेरणास्रोत मानते हैं।
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