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Amar Shaheed Lal Padmadhar Singh / अमर शहीद लाल पद्मधर सिंह

Author Name: Ramesh Pratap Singh Jakhi | Format: Paperback | Genre : Biographies & Autobiographies | Other Details

आज, हम स्वतंत्रता संग्राम के उन महान शहीदों की याद करते हैं जिनके त्याग ने हमारी स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण योगदान किया। लाल पद्मधर सिंह, जिनका जन्म 14 अगस्त 1914 को कृपालपुर, सतना जिला (मध्य प्रदेश) में हुआ, एक सच्चे देशभक्त थे। उनके जीवन का सार्थक अंश यह था कि उनमें न तो धन की चाह थी और न ही किसी प्रकार का डर या भय।

पद्मधर ने अपने मातृभूमि के प्रति अपने अटल प्रेम के साथ एक प्रतिज्ञा की थी कि वे भारत की स्वतंत्रता पाने तक विवाह नहीं करेंगे, क्योंकि उन्होंने माना कि गुलामी के बवंदरों में बच्चों को पालना उनकी मातृभूमि के सम्मान के अनुरूप नहीं था।

1942 के 12 अगस्त को, एक छात्र महासभा की रैली का नेतृत्व करते समय, पद्मधर को पुलिस की गोलियों से शहीदी प्राप्त हुई।

रमेश प्रताप सिंह जाखी ने पद्मधर के जीवन का विवरण देते हुए उनके महान बलिदान को सुंदरता से व्यक्त किया है। सुमित्रा नंदन पंत ने 11 मार्च 1958 को प्रयाग में पद्मधर के आत्मनिर्वाचन को सलामी दी और कहा कि स्वतंत्रता की नींव आत्म-त्याग पर आधारित है। लाल पद्मधर सिंह का नाम हमारे स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सदैव अंकित रहेगा, वे स्वतंत्रता के लिए अपनी अनथक समर्पण भावना का प्रतीक है।

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रमेश प्रताप सिंह जाखी

श्री रमेश प्रताप सिंह जाखी के पिता स्व. श्री चन्द्रभान सिंह ग्राम-जाखी, जिला-सतना के निवासी थे। रमेश ने एम.ए. (इतिहास) की शिक्षा प्राप्त कर शिक्षा विभाग में अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। काव्य लेखन में रमेश की विशेष रुचि रही है। इनके प्रकाशित काव्य संग्रह में विन्ध्य केर थाती व अंधियार नहीं गा (बघेली में) कुछ कहने आया हूं व अमर शहीद ठाकुर रणमत सिंह (खड़ी बोली में) अत्यन्त प्रचलित हुए। इसके अतिरिक्त काव्य लेखन विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। 

लाल पद्मधर सिंह हमारे राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी आहुति देने वाले रण बांकुरें हैं। उनका बलिदान इतिहास में सदैव अंकित रहेगा। अब तक उन पर गद्य में कोई स्वतंत्र कृति उपलब्ध नहीं है। श्री रमेश प्रताप सिंह की यह कृति इस बड़े अभाव को पूरा करेगी।

इससे भी अधिक चूंकि यह वृत्तान्त गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में है, इसलिए यह बच्चों व युवाओं के लिए सहजबोध - गम्य और रोचक होने से पठनीय और प्रेरक होगी। यह काव्य साहित्य के अतिरिक्त इतिहास के एक सुनहले पृष्ठ का दस्तावेज भी साबित होगा।

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